Friday, 17 March 2017

श्रीमतीजी कौलिंग।

श्रीमतीजी कौलिंग।
स्कूटर की रफ्तार खुद ब खुद बढ गयी
फोन घनघनाए जा रहा था लगातार बिना रूके
बजते फोन से बढती जा रही थी घबराहट मेरी
जैसे चोरी की हो और जाना हो हवालात अब
ट्रैफिक तोड़ते, सिग्नल लांघते, सीढियां फांदते
हड़बराए अकबकाए भागता हुआ घर पहुँचा मै
मैडम ने दरवाजे पर ही मोरचा संभाल रखा था
क्या कर रहे थे अब तक,अजी कितना काम होगा
होगी कोई चुड़ैल-वुड़ैल आदि-आदि, अनंत।
जैसे-तैसे पीछा छूटा ही था कि फिर बजी घंटी
मिस्टर सिन्हा आप निकल गये, क्यों
सभी बैठे हुए हैं, आपकी ही फैमिली नही है।
कल से सात से पहले आफिस मत छोड़ना।
इधर भी टेपरिकार्डर चालू ही था
देखोजी, ये रोज-रोज की नौटंकी नही चलेगी
आप ही नही हो नौकरीवाले, कल से ५ माने ५।
झुंझलाया बौखलाया मै खो सा गया था खुद मे
किसी ने झकझोरा तो नींद से ही जागा जैसे

पापा,  धोबी का गदहा घर का न घाट का
कैसा होता है।  हां बेटा, होता तो है।

नोटबन्दी विशेष

मैनेजर साहब के पास एक कड़कमूंछ अफसर बैठे थे, पूछा केतना है?
जी साठ हजार।
कहां से लाए?
जी परवतिया के माए जरे था।
अफसर कड़ा और ईमानदार लग रहा था। पूछने लगा, केतना बेतन    है?, टैक्स भड़ते होेेे के नही?, जलिया त नही हो?, फेर एतना ब्लैक मनी कैसे है? पैन कार्ड, आधार कार्ड, भोटर कार्ड, बिजली बिल, सैलरी स्लिप सभ डाकूमेन्ट लगाओ। कहां से एतना पैसा जमा कर लेते हैं, डिफाल्टर्स, यही सब सारा सिस्टम चौपट कएले हैं। मारे का-का बोलले जा रहा था। कागज तैयार कर कल्हे आना।
मेरे बाद अगला मुजरिम।
केतना है?
जी पांच लाख।
कहां से लाए?
मै मंत्री जी के नाई का भाई हूं, साहब ने भेजा है।
कड़कमूंछ अफसर तुरत कुर्सी छोड़ कर खड़ा हो गया।
दांत निपोड़े बोला, अरे बैठिए महराज, पहिले ना बोलते।
मैनेजर साब, पहिले इनको बिदा कीजिए। कउनो शादी का कार्ड लगा दीजिए।
मगर मै अपनी और अपने सारे स्टाफ मेम्बर्स की शादी करा चुका हूं, मैनेजर ने फुसफुसा कर असमर्थता जतायी।
त का हुआ, ढाई लाख पे मेरा आ ढाई लाख पे  मेरी बीवी की शादी का कार्ड  लगवा दीजिए। टेन्शन काहे का है।
श्रीमान आप जाइए। मंत्री जी को मेरा और मैनेजर साहब का  गोर लाग दीजिएगा।
कहिएगा औरो कार्ड है, सेवा होगा त जरूरे बताएंगे।

Thursday, 16 March 2017

रिप्रजेन्टेशन

रिप्रजेन्टेशन
एक बार एक सूखे से हाय-हाय करती जनता पर इंद्र की बड़ी जोर क्रिपा हुयी और झमाझम बारिश पड़ने लगा। मरनासन्न जनता को पहले तो बड़ा हर्ष हुआ पर आगे देखिए।

 ठाकुर साहब की ठकुराइन : ठाकुर सा, इ त लोहरी साव का पूरा खेतवे पट जाएगा जल्दी से कुछ करिए जी।
ठाकुर साहब ने रिप्रेजेन्टेशन लिखवाया। माननीय इंद्र, चुंकि हम ठाकुर जात के हैं, गांव के पुस्तैनी जमींदार, तो पानी का आधा हिस्सा तो हमे ही मिलना चाहिए, बाद मे लोहरी साव को मिले, छोट जात का है बराबरी नही होना चाहिए। आपका खादिम। अंगुठा का छाप।

शुरुआत हो गयी।
 पंडिताइन : बारिश हुआ आपके धरम- करम से आ  खेत पट रहा है सब का।
 मजमून : मै गांव का पंडित भगवान को प्रसन्न मैने किया। सब के खेतों का एक तिहाई पानी मिले  या  मेरी इच्छा से खेतों मे बारिश हो।

महाजन : यज्ञ का खर्च हमने किया, पानी भी हमी को मिलना चाहिए।

अनुसूचित लोग : सौ सालों से हमारा हक मार कर रखा है पचास प्रतिशत आरक्षण वाला तो मिले ही मिले आ बाकीयो मे हमको हिस्सा मिले आ कुछ तालाबो बनवा कर मिले । माने मिलते ही रहे दो-चार सौ सालों तक।

जतरा भगत : बिकलांग हैं इसलिए मिले।

पढल- लिखल :मूरख क्या करेगा इसलिए हमको मिले।

मूरख : मूर्ख हैं इसलिए मिले।

   जो पत्नी  के कहने पर ना जगे उनकी पत्नियां जगीं। मेरे पति ने चूड़ी पहनी हुयी है इसलिए हमको भी मिले।

मेरे पति ने मेंहदी लगा रखी है इसलिए मिले।

इन्द्र भगवान भी आजिज आ गये थे कहा पहले बिजलौका गिरा  देता हूं उसमे अपना-अपना हिस्सा बांट उसके बाद ही बारिश होगी अब।
प्रकाश रंजन