व्यंग्यशाला
Thursday, 1 August 2019
कभी तुम रब बनाते हो
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कभी तुम रब बनाते हो कभी दिल मे छुपाते हो कभी अपना बताते हो कभी सब भूल जाते हो।। कभी कहते हो मुझ सा दूसरा न है कोई जग मे कभी काफिर बताते...
तुम्हारे होने के हर पल को
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तुम्हारे होने के हर पल को मै मुट्ठी भर जी लेता हूं कि तुम जब नही होगे मेरी बंद मुट्ठी से निकलकर अचानक खड़े हो जाओगे मेरे सामने प्रत्यक्...
ख्वाबों की सुबह
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ख्वाबों की सुबह पंछियों का कलरव क्षितिज पर छायी सूरज की लालिमा उम्मीद की किरणों से रौशन होते ख्वाब।। तपती दुपहरी दहकता सूरज माथे पर चुह...
मुफ्त मे बदनाम
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ना नूर है ना जीस्त ही ना मैकदे ना जाम ना सांसें हैं ना शोर है ना गु़रबतें ना दाम शैल हम हैं मुफ्त मे बदनाम। ना इश्क है ना महजबीं ना दुआ...
आशिकी मे वो भी मुकाम था
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आशिकी मे वो भी मुकाम था ख़ादिम जवान था बाहों मे सारा जहान था तब कहते थे तुम इश्क हो, ईमान हो इंसान नही, भगवान हो अब जब ख़ादिम खंडहर है उठ...
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