सन्डे का करती हैं
वो भी इन्तजार
श्रीमती जी हमारी
सप्ताह भर का कोटा
वो रखती हैं तैयार
राशनपानी,सब्जीभाजी
बिजलीबत्ती,अगड़मबगड़म
लगता मार्केट का
चक्कर बारम्बार
बीबी की दहशतगर्दी
फरमाइशें बच्चों की
कम कहाँ थी की
महरी भी अब
दिमाग चलाती है
छुट्टी की अर्जी वो
इसी दिन लगाती है
उसके भी काम मैडम
मुझी से करवाती हैं
बेचारे बाबुओं का
कौन बान्टे दर्द
शनिवार की शाम से
ही डर जाता है मर्द
काश दफ्तर मे
ना होता कोई औफ
सन्डे के नाम से
हो जाता है खौफ
अपील आप सभी से
एक संघ बनाइये
सन्डे के उत्पीड़न से
पतियों को बचाइये
मदद करने को
सरकार भी आगे आए
सन्डे को भी सारे
आफिस दफ्तर खुलवाये
प्रकाश रंजन
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