पूरे डेढ दिन बेहोश रहे थे माथुर साहब और जब होश आया तो किसी अस्पताल के बेड पर थे। होश मे आते ही वही खौफनाक मंजर उनकी आंखों के सामने था जब दंगाई आदमियों को भेड़-बकरी के तरह काटे दे रहे थे और सोच-सोचकर उनके रोंगटे खड़े हो गये। अपने को जिन्दा देख उन्होने मन ही मन ईश्वर को सैकड़ो धन्यवाद दिया।
फिर डाक्टर ने आकर उनका चेक अप किया और बहुत सारे निर्देश दिए। ये करना है, ये नही करना। डाइट ऐसा होगा, दवाइयां ऐसे लेनी है और उनके जाने के बाद वो फिर से सोचों के सागर मे खो गये।
माथुर जी इस घटना के बाद खासे चिड़चिड़े से हो गये थे और एक खास समुदाय के लोगों के लिए तो मन मे जहर भर गया था।। कुछ अवांछित शब्द अनायास ही आकर उनकी शब्दावली मे शामिल हो गये थे और मुल्ले, कटुए, भड़वे आदि शब्दों का अनावश्यक प्रयोग करने लगे थे। इन गद्दार मुल्लों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए अपनी राय जाहिर करते रहते।
इमरजेंसी मे जहां परिजनों का जाना मना था दिन का अधिकांश हिस्सा खामोशी से बीतता पर जब भी डाक्टर साहब राउंड पर आते वो मुखर हो जाते थे और अपनी भड़ास निकालते रहते।। ये मुल्ले किसी के नही, गांधीजी ने इनको इस देश मे रखकर बड़ी गलती की। गद्दार हैं सब के सब। इन सबों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए। आतंकवादी हैं वगैरह वगैरह।। डाक्टर पता नही उनकी सुनता नही सुनता पर हमेशा मोहक मुश्कान के साथ उनका ढांढस बंधाता, घबराइए मत आप जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे, फिर भगा लेना इनको पाकिस्तान। डाक्टर हमेशा मुस्कुराने वाला एक नेकदिल इंसान लगा उन्हे जो उनका बहुत खयाल रखा करता।
माथुर जी दूसरी कौम को गलियाते धीरे-धीरे स्वस्थ होते जा रहे थे। उबका बड़बडाना बदस्तूर जारी था पर एक दिन तो उन्होने हद ही कर दी। एक दाढी वाले आदमी के वार्ड मे घुसने पर उन्होने जो हंगामा खड़ा किया। अपने परिजनों से गंगाजल मंगाकर फर्श को धुलवाया तब जाकर कहीं शांत हुए।
पूरे डेढ महिने वो उस मोहक मुशकान वाले डाक्टर के देख-रेख मे रहे। शायद उनका यह जीवन या तो भगवान ने दिया था या फिर उसी डाक्टर की देन था वरना ऐसे हादसों से कोई बचता है क्या? डाक्टर साहब ने दिन को दिन और रात को रात नही समझा था, अपनी जान लगा दी थी उनकी जान बचाने को। वाकई वो इंसान के रूप मे भगवान ही थे।
इधर सुबह- शाम भगवान की प्रार्थना और डाक्टर साहब के आने पर दूसरे कौम को गालियां देना माथुर साहब का व्यवसाय बन गया था। अब तो कई दफे डाक्टर साहब मे भी उनको भगवान का रूप दिख जाता। कहते हैं डाक्टर भगवान का ही रूप होता है और उन्होने इसे महसूस किया था।
आज उन्हे डिसचार्ज होना था और अपने कदमों पर चलकर वो घर जाने वाले थे। पहले डाक्टर साहब को धन्यवाद देंगे फिर भगवान का धन्यवाद अदा करने मंदिर जाएंगे। डाक्टर के सीधा कदमों मे गिर जाना है, इंसान नही कोई फरिश्ता ही हैं वो। भावों के अतिरेक मे डूबे हुए वो उनके चेम्बर के तरफ बढे पर वहां पहुंचते ही लकवा सा मार गया उन्हें, फिर से आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। नामबोर्ड पर नाम लिखा था
" डा. सहाब कौसर"
और अब उनके कदम आगे नही बढ पा रहे थे!
फिर डाक्टर ने आकर उनका चेक अप किया और बहुत सारे निर्देश दिए। ये करना है, ये नही करना। डाइट ऐसा होगा, दवाइयां ऐसे लेनी है और उनके जाने के बाद वो फिर से सोचों के सागर मे खो गये।
माथुर जी इस घटना के बाद खासे चिड़चिड़े से हो गये थे और एक खास समुदाय के लोगों के लिए तो मन मे जहर भर गया था।। कुछ अवांछित शब्द अनायास ही आकर उनकी शब्दावली मे शामिल हो गये थे और मुल्ले, कटुए, भड़वे आदि शब्दों का अनावश्यक प्रयोग करने लगे थे। इन गद्दार मुल्लों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए अपनी राय जाहिर करते रहते।
इमरजेंसी मे जहां परिजनों का जाना मना था दिन का अधिकांश हिस्सा खामोशी से बीतता पर जब भी डाक्टर साहब राउंड पर आते वो मुखर हो जाते थे और अपनी भड़ास निकालते रहते।। ये मुल्ले किसी के नही, गांधीजी ने इनको इस देश मे रखकर बड़ी गलती की। गद्दार हैं सब के सब। इन सबों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए। आतंकवादी हैं वगैरह वगैरह।। डाक्टर पता नही उनकी सुनता नही सुनता पर हमेशा मोहक मुश्कान के साथ उनका ढांढस बंधाता, घबराइए मत आप जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे, फिर भगा लेना इनको पाकिस्तान। डाक्टर हमेशा मुस्कुराने वाला एक नेकदिल इंसान लगा उन्हे जो उनका बहुत खयाल रखा करता।
माथुर जी दूसरी कौम को गलियाते धीरे-धीरे स्वस्थ होते जा रहे थे। उबका बड़बडाना बदस्तूर जारी था पर एक दिन तो उन्होने हद ही कर दी। एक दाढी वाले आदमी के वार्ड मे घुसने पर उन्होने जो हंगामा खड़ा किया। अपने परिजनों से गंगाजल मंगाकर फर्श को धुलवाया तब जाकर कहीं शांत हुए।
पूरे डेढ महिने वो उस मोहक मुशकान वाले डाक्टर के देख-रेख मे रहे। शायद उनका यह जीवन या तो भगवान ने दिया था या फिर उसी डाक्टर की देन था वरना ऐसे हादसों से कोई बचता है क्या? डाक्टर साहब ने दिन को दिन और रात को रात नही समझा था, अपनी जान लगा दी थी उनकी जान बचाने को। वाकई वो इंसान के रूप मे भगवान ही थे।
इधर सुबह- शाम भगवान की प्रार्थना और डाक्टर साहब के आने पर दूसरे कौम को गालियां देना माथुर साहब का व्यवसाय बन गया था। अब तो कई दफे डाक्टर साहब मे भी उनको भगवान का रूप दिख जाता। कहते हैं डाक्टर भगवान का ही रूप होता है और उन्होने इसे महसूस किया था।
आज उन्हे डिसचार्ज होना था और अपने कदमों पर चलकर वो घर जाने वाले थे। पहले डाक्टर साहब को धन्यवाद देंगे फिर भगवान का धन्यवाद अदा करने मंदिर जाएंगे। डाक्टर के सीधा कदमों मे गिर जाना है, इंसान नही कोई फरिश्ता ही हैं वो। भावों के अतिरेक मे डूबे हुए वो उनके चेम्बर के तरफ बढे पर वहां पहुंचते ही लकवा सा मार गया उन्हें, फिर से आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। नामबोर्ड पर नाम लिखा था
" डा. सहाब कौसर"
और अब उनके कदम आगे नही बढ पा रहे थे!
No comments:
Post a Comment