आज भोरे से उसका मन औनाइल था। आज नही तो कभी नही। भलेन्टाइन डे फेनो अगले साल आएगा तभ तक कोन जाने जिनगी रहे ना रहे। ना ऐसे लटपटाने से नही बनेगा।
आज कुछ नही से कुछ हो। यार दोस्त सब माथा चटले है। सब चिढाते रहता है लड़की हिन्ट मार रही है और यही मौगा बनल है।
यह लटपटाने वाले शख्स हैंं बेलगोबना या बेलू यानि धरमेनदर यानि धर्मेन्द्र मंडल यानि धरमेनदर चाट एण्ड गोलगप्पे वाले ठेले का प्रोपराइटर।
शाम से रात तक चाट-फुचका बेचना एवम सुबह से शाम तक सपना के चक्कर मे रहना और रात से सुबह तक सपना के सपने देखना कुल मिला कर यही इनकी दिनचर्या है।
बेलगोबना या बेलू, काला-कलूटा बेलू, चौथी फेल बेलू, बेलू के बाल अधिक काले हैं या गाल ये चर्चा का विषय हो सकता है।
अंग्रेजी के ए से भी अपरिचित बेलू जब अपने पूरे जीट-जाट मे अंग्रेजी पेपर खोलकर चाय के दुकान पर आकर बैठता था तो देखने वाले हंसते थे। सपना के आने-जाने का समय होगा पक्का।
सपना, चांदी जैसे रंग और सोने जैसे बालों वाली सपना, पिता सरकारी अधिकारी और खुद डाक्टर बनने के सपने संजोए कोचिंग-कालेज को आती-जाती सपना।
यूं तो अपनी राह चलने वाली मगर फिर भी कभी अगर नजर उठ जाए तो कोयले की खान की तरह दिखने वाला बेलगोबना सामने नजर गड़ाए दिखता। बेचारी कभी चिढती तो कभी नजर अंदाज करती।
इतनी देर की कहानी से एक बात आपके जेहन मे घूम रही होगी बड़ी बेमेल सी जोड़ी है। मगर मिथुन चक्रवर्ती का फिल्म देख कर बड़े हुए युवाओं के साथ यह एक समस्या रही है कि वे प्रेम करते वक्त प्रेमिका का स्तर नही देखते।
चलते हैं आज के दिन मे फिर से। बेलू चार बजे सुबह ही उठ गया था और उसने शाह साहब की बाउंड्री फांद कर उनके सारे गुलाब तोड़ लिए थे। दीवार फांदते समय शायद हाथ मे बाउंड्री का शीशा चुभ गया था। हाथ लहूलुहान, बलबल खून, मगर हाय रे इश्क का जुनून।
अगर मान गयी तो इसी खून से मांग ....। बेलू शर्मा कर स्याह लाल हो गया था हाथ मे थमे कत्थई रंग वाले गुलाब की पंखुरियों की तरह।
बेलगोबना जैसों से हम नफरत क्यूं करते हैं? बेचारे की शादी बचपन मे ही हो गयी थी। बच्चे बचपन मे ही हो गये थे। ठेला दुकान की आमदनी से घर चलता था।
औरत की चिख-चिख और बच्चों की चिल्ल-पों सुबह से ही शुरु हो जाती थी। वह सर झटकता और बीड़ी धूंकता। सौंदर्य उसने देखा तक नही था और जब देखा तो दोस्तों ने झाड़ पर चढा दिया। जो चार पैसों की आमदनी थी वो दोस्तों मे लुटी जा रही थी और बच्चे तक भूखे सो जा रहे थे।
दोस्त गंभीर नही थे। बस मजाक करते और बेलू से पैसे झीटते। सपना का नाम लो बस बेलू धन-कुबेर बन जाता था। ठेला तक बेच कर यार-दोस्तों को खिला-पिला सकने लायक। इश्क हो तो ऐसा हो वरना न हो। दोस्त समझ गये थे सो फायदा उठाते।
प्रेम कर लेना, दोस्तों से हंसी ठिठोली कर लेना ये सब बहुत आसान है मगर प्रेम को शब्द दे पाना वो भी अपने प्यार के सामने बड़ा ही कठिन। फौलाद सी हिम्मत चाहिए एक फूल सी लड़की को प्रपोज करने के लिए। वो तो भला हो कि हाथ मे गुलाब हैं जो काम को अपेक्षाकृत आसान कर देंगे।
गुलाब बस बढा देना है। महबूब थोड़ा शर्माएगा और गुलाब थाम लेगा मगर कहीं अंग्रेजी मे नाम पूछ लिया तो?
दोस्तों ने उसे आगाह कर दिया था और उसने भी कोई कसर नही छोड़ी थी ' आइ माइ नेम इज धरमेनदर चाट पकौड़ा। हाज डू डू' अच्छी तरह याद है उसे।
लो परीक्षा की घड़ी आ गयी। बेलू बढ गया है। सर पर कफन बांध कर। लड़की हंसते-हंसते जा रही है। बेलू के हाथ मे दसेक गुलाब हैं। बेलू की छाती मे बज रहा है धड़-धड-धड़-धड़। वो बस पहुंचने वाला है। अब उसे कुछ और नही दिख रहा, कुछ नही सूझ रहा, बस हाथों के गुलाब और आगे गुलाब सी लड़की।
चटाक-चटाक की आवाज आयी है। बेलू दोनो हाथों से अपने गाल थामे है। गुलाब रास्ते मे बिखड़ चुके हैं। बिखड़ा हुआ बेलू का दिल भी है मगर वो पब्लिक नही देख पा रही।
लड़की के परिजन आ गये हैं और पुलिस बुलाने की बात कर रहे हैं। बेलू की औरत हाय-हाय कर रही है। बेलू के बच्चे वहीं चोर-पुलिस खेल रहे हैं।
बेलू अब अपने सही जगह पर है। उसने लड़की के दोनो पैरों को अपने हाथों से थाम रखा है और रहम की भीख मांगता जा रहा है।
बेलगोबना या बेलू यानि धरमेनदर यानि धर्मेन्द्र मंडल यानि धरमेनदर चाट एण्ड गोलगप्पे वाले ठेले के प्रोपराइटर की ये वाली प्रेम कहानी की यहीं दी इण्ड हो जाती है।
आज कुछ नही से कुछ हो। यार दोस्त सब माथा चटले है। सब चिढाते रहता है लड़की हिन्ट मार रही है और यही मौगा बनल है।
यह लटपटाने वाले शख्स हैंं बेलगोबना या बेलू यानि धरमेनदर यानि धर्मेन्द्र मंडल यानि धरमेनदर चाट एण्ड गोलगप्पे वाले ठेले का प्रोपराइटर।
शाम से रात तक चाट-फुचका बेचना एवम सुबह से शाम तक सपना के चक्कर मे रहना और रात से सुबह तक सपना के सपने देखना कुल मिला कर यही इनकी दिनचर्या है।
बेलगोबना या बेलू, काला-कलूटा बेलू, चौथी फेल बेलू, बेलू के बाल अधिक काले हैं या गाल ये चर्चा का विषय हो सकता है।
अंग्रेजी के ए से भी अपरिचित बेलू जब अपने पूरे जीट-जाट मे अंग्रेजी पेपर खोलकर चाय के दुकान पर आकर बैठता था तो देखने वाले हंसते थे। सपना के आने-जाने का समय होगा पक्का।
सपना, चांदी जैसे रंग और सोने जैसे बालों वाली सपना, पिता सरकारी अधिकारी और खुद डाक्टर बनने के सपने संजोए कोचिंग-कालेज को आती-जाती सपना।
यूं तो अपनी राह चलने वाली मगर फिर भी कभी अगर नजर उठ जाए तो कोयले की खान की तरह दिखने वाला बेलगोबना सामने नजर गड़ाए दिखता। बेचारी कभी चिढती तो कभी नजर अंदाज करती।
इतनी देर की कहानी से एक बात आपके जेहन मे घूम रही होगी बड़ी बेमेल सी जोड़ी है। मगर मिथुन चक्रवर्ती का फिल्म देख कर बड़े हुए युवाओं के साथ यह एक समस्या रही है कि वे प्रेम करते वक्त प्रेमिका का स्तर नही देखते।
चलते हैं आज के दिन मे फिर से। बेलू चार बजे सुबह ही उठ गया था और उसने शाह साहब की बाउंड्री फांद कर उनके सारे गुलाब तोड़ लिए थे। दीवार फांदते समय शायद हाथ मे बाउंड्री का शीशा चुभ गया था। हाथ लहूलुहान, बलबल खून, मगर हाय रे इश्क का जुनून।
अगर मान गयी तो इसी खून से मांग ....। बेलू शर्मा कर स्याह लाल हो गया था हाथ मे थमे कत्थई रंग वाले गुलाब की पंखुरियों की तरह।
बेलगोबना जैसों से हम नफरत क्यूं करते हैं? बेचारे की शादी बचपन मे ही हो गयी थी। बच्चे बचपन मे ही हो गये थे। ठेला दुकान की आमदनी से घर चलता था।
औरत की चिख-चिख और बच्चों की चिल्ल-पों सुबह से ही शुरु हो जाती थी। वह सर झटकता और बीड़ी धूंकता। सौंदर्य उसने देखा तक नही था और जब देखा तो दोस्तों ने झाड़ पर चढा दिया। जो चार पैसों की आमदनी थी वो दोस्तों मे लुटी जा रही थी और बच्चे तक भूखे सो जा रहे थे।
दोस्त गंभीर नही थे। बस मजाक करते और बेलू से पैसे झीटते। सपना का नाम लो बस बेलू धन-कुबेर बन जाता था। ठेला तक बेच कर यार-दोस्तों को खिला-पिला सकने लायक। इश्क हो तो ऐसा हो वरना न हो। दोस्त समझ गये थे सो फायदा उठाते।
प्रेम कर लेना, दोस्तों से हंसी ठिठोली कर लेना ये सब बहुत आसान है मगर प्रेम को शब्द दे पाना वो भी अपने प्यार के सामने बड़ा ही कठिन। फौलाद सी हिम्मत चाहिए एक फूल सी लड़की को प्रपोज करने के लिए। वो तो भला हो कि हाथ मे गुलाब हैं जो काम को अपेक्षाकृत आसान कर देंगे।
गुलाब बस बढा देना है। महबूब थोड़ा शर्माएगा और गुलाब थाम लेगा मगर कहीं अंग्रेजी मे नाम पूछ लिया तो?
दोस्तों ने उसे आगाह कर दिया था और उसने भी कोई कसर नही छोड़ी थी ' आइ माइ नेम इज धरमेनदर चाट पकौड़ा। हाज डू डू' अच्छी तरह याद है उसे।
लो परीक्षा की घड़ी आ गयी। बेलू बढ गया है। सर पर कफन बांध कर। लड़की हंसते-हंसते जा रही है। बेलू के हाथ मे दसेक गुलाब हैं। बेलू की छाती मे बज रहा है धड़-धड-धड़-धड़। वो बस पहुंचने वाला है। अब उसे कुछ और नही दिख रहा, कुछ नही सूझ रहा, बस हाथों के गुलाब और आगे गुलाब सी लड़की।
चटाक-चटाक की आवाज आयी है। बेलू दोनो हाथों से अपने गाल थामे है। गुलाब रास्ते मे बिखड़ चुके हैं। बिखड़ा हुआ बेलू का दिल भी है मगर वो पब्लिक नही देख पा रही।
लड़की के परिजन आ गये हैं और पुलिस बुलाने की बात कर रहे हैं। बेलू की औरत हाय-हाय कर रही है। बेलू के बच्चे वहीं चोर-पुलिस खेल रहे हैं।
बेलू अब अपने सही जगह पर है। उसने लड़की के दोनो पैरों को अपने हाथों से थाम रखा है और रहम की भीख मांगता जा रहा है।
बेलगोबना या बेलू यानि धरमेनदर यानि धर्मेन्द्र मंडल यानि धरमेनदर चाट एण्ड गोलगप्पे वाले ठेले के प्रोपराइटर की ये वाली प्रेम कहानी की यहीं दी इण्ड हो जाती है।
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