Thursday, 1 August 2019

जान है तो जहान है

सुबह-सुबह कैंडी क्रश की सात लेवलें पार कर गया। दिन शायद अच्छा गुजरे मगर जाने क्यूं श्रीमती गुस्से मे दिख रही हैं।
सब खैरियत हो अखबार मे घुस जाऊं। मोदी जी ने अच्छे दिनों के लिए कुछ घोषणाएं और कर दी हैं मगर श्रीमती की त्यौरियां चढी हुयी हैं। 
चलूं बालकनी मे। पड़ोसन सामने बाल संवार रही है। चेहरा खिल उठा है। कनछियों से मगर देखता हूं श्रीमती अब भी नाराज दिखती हैं। 
सबेरे निकल लूं आज। कार्यालय मे दिन सामान्य सा है। कैटरीना खूबसूरत है या दीपिका इस पर डिबेट चल रही है मगर मेरे ख्यालों मे तो श्रीमती का लाल-लाल चेहरा नाच रहा है।
ओवरटाइम कर लेता हूं मगर शाम को आफिस से घर लौटते कदम भारी हैं। महावीर मंदिर होते हुए डरते-सहमते वापस लौटा हूं। श्रीमती बच्चों पर गुस्सा उतार रहीं है आज यकीनन कुछ होने वाला है।
मोबाइल, टीवी खतरनाक हैं सो बच्चों को पढाने को दुबक गया हूं। बीच-बीच मे हालात की बानगी लेता हूं पर श्रीमती के सामान्य होने के आसार नही दिखते।
भारत ने पाकिस्तान से मैच जीत लिया है। मन खुश होना चाहता है उछलना चाहता है मगर श्रीमती के खौफ से जब्त कर लेता हूं। जान है तो जहान है, भारत और पाकिस्तान है।
खाने की मेज पर खामोशी का साया है। पिन ड्राप साइलेंस पर श्रीमती के तेवर अब भी चढे हुए हैं मन आशंका से घबड़ाया हुआ है।
सिरहाने मे हनुमान चालीसा रख जल्दी से सो जाना हितकारी है मगर रात खौफनाक डरावने ख्वाबों से भरी हुयी है।
पत्निम शरणं गच्छामि। ज्ञान की प्राप्ति होती है और चरणागत हो जाता हूं।
"हे बच्चों की अम्मां, यह जो तुमने दुष्टों का संहार करनेवाला रूप धरा है उससे मेरा मन भावी अनिष्ट के लिए सशंकित है। अपने शरण मे आए हुए इस तुच्छ प्राणी का कल्याण करो बच्चों की माते। तुम जिस तरह जिस हाल मे रखोगी मै रह लूंगा परंतु तुम्हारे चेहरे का यह तेज अब न सह सकूंगा प्रिये"!
श्रीमती के चेहरे पर अब मुस्कान है, दया की मूर्ति तू कितनी महान है।
###एक आम पीड़ित भारतीय पति के एक आम से दिन की ईमानदारी से की गयी डायरी इंट्री।

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