मैं ढूंढा करता था
अपने ख्वाबो-ख्यालों के परे भी
वो मकान अक्सर ही
जिसकी दीवारें ऐसी थी और दरवाजे वैसे थे
जिसमे कुछ खिड़कियाँ थी
जैसा कि होती है हर घर मे अमूमन और
जिसकी बालकनी मे खड़े रहते थे तुम!
अपने ख्वाबो-ख्यालों के परे भी
वो मकान अक्सर ही
जिसकी दीवारें ऐसी थी और दरवाजे वैसे थे
जिसमे कुछ खिड़कियाँ थी
जैसा कि होती है हर घर मे अमूमन और
जिसकी बालकनी मे खड़े रहते थे तुम!
आज सालों बाद दिख गया
मुझे मेरा मकान जो बिल्कुल वहीं था
उसी गली मे उसी जगह
सालों से वह वहीं तो था
मै ही अपनी नीमख्याली मे
भटकता फिर रहा था इधर-उधर।
मुझे मेरा मकान जो बिल्कुल वहीं था
उसी गली मे उसी जगह
सालों से वह वहीं तो था
मै ही अपनी नीमख्याली मे
भटकता फिर रहा था इधर-उधर।
शायद मेरी तलाश खत्म हो
शायद जीवन मुकम्मल हो चला हो
शायद अब भी उस बालकनी मे आती हो तुम
शायद अब भी दरख्तों के पीछे से चांद दिखता हो
शायद जीवन मुकम्मल हो चला हो
शायद अब भी उस बालकनी मे आती हो तुम
शायद अब भी दरख्तों के पीछे से चांद दिखता हो
No comments:
Post a Comment