Friday, 17 March 2017

नोटबन्दी विशेष

मैनेजर साहब के पास एक कड़कमूंछ अफसर बैठे थे, पूछा केतना है?
जी साठ हजार।
कहां से लाए?
जी परवतिया के माए जरे था।
अफसर कड़ा और ईमानदार लग रहा था। पूछने लगा, केतना बेतन    है?, टैक्स भड़ते होेेे के नही?, जलिया त नही हो?, फेर एतना ब्लैक मनी कैसे है? पैन कार्ड, आधार कार्ड, भोटर कार्ड, बिजली बिल, सैलरी स्लिप सभ डाकूमेन्ट लगाओ। कहां से एतना पैसा जमा कर लेते हैं, डिफाल्टर्स, यही सब सारा सिस्टम चौपट कएले हैं। मारे का-का बोलले जा रहा था। कागज तैयार कर कल्हे आना।
मेरे बाद अगला मुजरिम।
केतना है?
जी पांच लाख।
कहां से लाए?
मै मंत्री जी के नाई का भाई हूं, साहब ने भेजा है।
कड़कमूंछ अफसर तुरत कुर्सी छोड़ कर खड़ा हो गया।
दांत निपोड़े बोला, अरे बैठिए महराज, पहिले ना बोलते।
मैनेजर साब, पहिले इनको बिदा कीजिए। कउनो शादी का कार्ड लगा दीजिए।
मगर मै अपनी और अपने सारे स्टाफ मेम्बर्स की शादी करा चुका हूं, मैनेजर ने फुसफुसा कर असमर्थता जतायी।
त का हुआ, ढाई लाख पे मेरा आ ढाई लाख पे  मेरी बीवी की शादी का कार्ड  लगवा दीजिए। टेन्शन काहे का है।
श्रीमान आप जाइए। मंत्री जी को मेरा और मैनेजर साहब का  गोर लाग दीजिएगा।
कहिएगा औरो कार्ड है, सेवा होगा त जरूरे बताएंगे।

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