Friday, 17 March 2017

श्रीमतीजी कौलिंग।

श्रीमतीजी कौलिंग।
स्कूटर की रफ्तार खुद ब खुद बढ गयी
फोन घनघनाए जा रहा था लगातार बिना रूके
बजते फोन से बढती जा रही थी घबराहट मेरी
जैसे चोरी की हो और जाना हो हवालात अब
ट्रैफिक तोड़ते, सिग्नल लांघते, सीढियां फांदते
हड़बराए अकबकाए भागता हुआ घर पहुँचा मै
मैडम ने दरवाजे पर ही मोरचा संभाल रखा था
क्या कर रहे थे अब तक,अजी कितना काम होगा
होगी कोई चुड़ैल-वुड़ैल आदि-आदि, अनंत।
जैसे-तैसे पीछा छूटा ही था कि फिर बजी घंटी
मिस्टर सिन्हा आप निकल गये, क्यों
सभी बैठे हुए हैं, आपकी ही फैमिली नही है।
कल से सात से पहले आफिस मत छोड़ना।
इधर भी टेपरिकार्डर चालू ही था
देखोजी, ये रोज-रोज की नौटंकी नही चलेगी
आप ही नही हो नौकरीवाले, कल से ५ माने ५।
झुंझलाया बौखलाया मै खो सा गया था खुद मे
किसी ने झकझोरा तो नींद से ही जागा जैसे

पापा,  धोबी का गदहा घर का न घाट का
कैसा होता है।  हां बेटा, होता तो है।

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