Monday, 3 April 2017

न्यायाधीश

न्यायाधीश महोदय घर से निकले ही थे कि न्यायधीशाइन ने टोक दिया "आते वक्त एक किलो आलू, परवल, भिन्डी, जीरा, हल्दी और हरी मिर्ची पाव भर"। बिचारे कोर्ट का हिसाब-किताब भूल गये याद मे खाली आलू आ धनिया। न्याय कुछ एने- ओने हो गया, कोई नही पूछेगा सिस्टम ही ऐसा है ऊपर कोर्ट मे अपील होगा लेकिन हरी मिर्ची की जगह लाल मिर्ची आ गयी तो खैर नही।

तो बिचारे, अनमने ही न्याय कक्ष मे जाकर बैठे। मन-ही-मन दुराते रहे आलू एक किलो, परवल.....! 

केस पुकार हुआ, वकील अग्रेजी पढने लगा इ फिर लग गये जीरा मरीच ना ना हल्दी। हां तो हुजूर, यही केस है। 

हुजूर गहन चिन्तन मे थे। जनता समझ रही थी पंच परमेश्वर। बिचारे नून तेल मे रमे हुए थे। वकील साहब ने धीमे से पुकारा हुजूर बेल या जेल। हड़बड़ाहट मे निकल गया बेल। वकील ने अभिवादन किया जनता कानाफूसी करने लगी, जिह्वा पर साक्षात् `सरस्वती। मर्डर एकुज्ड को बेल, दूध का दूध, पानी का पानी। 

इधर जज साहब फिर हिसाब मे व्यस्त बैगन, ना बैगन नही बोली थी परवल कही थी।। अगला केस एक धनाढ्य का था जज साहब को इसमे कुछ उम्मीद थी पर किसी ने एप्रोच नही किया था अब तक, पेशकार से कहा आगे बढा दीजिए। 

फूलवती थोड़ी मिजाज की कड़ी है बोलने मे हिसाब नही करती। उसके झिड़कने के भय से साहब घबराये से रहते थे। 

अगला केस चोरी का था महज कुछ सौ रुपये चोरी और जेल मे दो साल से बंद, कुछ ले दे सकने की हालत मे नही, साहब जानते थे कहा अभी रहने दीजिये और आज बंद कीजिए कुछ इम्पोर्टैन्ट मसले देखने हैं। कोर्ट टूट गया आ न्यायाधीश महोदय फिर से दुहराने लगे आलू एक किलो ..... विचारमग्न।

"पता नही क्या पढ कर जज बन गये आलू प्याज का हिसाब रहता नही न्याय खाक करते होंगे।" फूलवती चालू थी कहा था पीसा हुआ हल्दी आ गोटा उठा लाये। बैगन किसने कहा था और सब्जी कैसा बासी उठा लाये पता नही ध्यान कहां रहता है।

न्यायाधीश महोदय प्रतिरोध नही कर सकते थे फिर उनका न्याय कौन करेगा। उन्होने विचार लिया था अगली बार कोई गलती नही होगी, चुटका बना लिया करेंगे जैसा कि परीक्षा के दिनों मे बनाते थे।
प्रकाश रंजन

2 comments:

  1. ����☺����अदभुत ।

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  2. ����☺����अदभुत ।

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