मिल जाती फिर से
वो एक 'चवन्नी' जिससे
खरीद सकते थे 'सपने'
जीवन की वो 'मिठास'
जो पांच पैसे वाले
'लेमनचूस' मे होती थी
आसमान मे पेंच लड़ाते
वो रंग-बिरंगे पतंग
जिसे पाने की खातिर
हम मीलों दौड़ सकते थे
रूपये की दस आती थी
अब क्यूं नही घूमती 'जिंदगी'
उस 'लट्टू' के जैसे
बिना रूके और बेमकसद
जाने कहां गुम हो गये
कंचों के लिए लड़ते
वो बिना 'मतलब' के दोस्त
जाने कहां खो गयी
वो खूबसूरत सी 'जिंदगी'
'बचपन' की कीमत देकर
जिसे पाने को हम बड़े हो गये।
वो एक 'चवन्नी' जिससे
खरीद सकते थे 'सपने'
जीवन की वो 'मिठास'
जो पांच पैसे वाले
'लेमनचूस' मे होती थी
आसमान मे पेंच लड़ाते
वो रंग-बिरंगे पतंग
जिसे पाने की खातिर
हम मीलों दौड़ सकते थे
रूपये की दस आती थी
अब क्यूं नही घूमती 'जिंदगी'
उस 'लट्टू' के जैसे
बिना रूके और बेमकसद
जाने कहां गुम हो गये
कंचों के लिए लड़ते
वो बिना 'मतलब' के दोस्त
जाने कहां खो गयी
वो खूबसूरत सी 'जिंदगी'
'बचपन' की कीमत देकर
जिसे पाने को हम बड़े हो गये।
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