Thursday, 1 August 2019

कोमल मन है झेल ना पाऊं

कोमल मन है झेल ना पाऊं
दुनिया के ये रगड़े 'मां'।
ढूंढता फिरता आंचल तेरी 
करके सबसे झगड़े 'मां'।।
होती है तकलीफ मुझे 'मां'
दिल से आह निकलती है।
छांह नही तेरे ममता की
मुझको बड़ा रूलाती है।।
भीड़-भड़ी इस दुनिया मे
है निश दिन लगता मेला 'मां'।
इस मतलब की दुनिया मे
पर मै हूं निपट अकेला 'मां'।।
बोल नही पाता तुझको
'मां' मन-ही-मन मैं रोता हूं।
थक कर जब निढाल रहूं
जब भूखे पेट मै सोता हूं।।
बड़ा हुआ था क्या पाने को
जब तू 'मां' मेरे पास नही।
तेरे ना होने से 'मां' मुझे
यह जीवन आता रास नही।।
कुछ ऐसा हो कालचक्र मे
फिर से पीछे लौट चलूं।
थाम चलूं तेरी उंगली फिर
सब फिक्र तुझे 'मां' सौंप चलूं ।।
बिना इजाजत 'मां' तेरी
ना घर की देहरी लांघू मैं।
सब सपने पूरे करने को
तुझसे एक चवन्नी मांगू मैं।।।

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