Thursday, 1 August 2019

महिला सशक्तिकरण

सुजित बाबू पर्सनैलिटी वाले मित्र हैं, जिम-विम करते हैं और बुलेट पर खूब सजते हैं सो उन्हें स्कूटी पर देख आंखों पर सहज विश्वास नही हुआ। गोटीयां चौड़ी की, देखा, सोलहो आने वही हैं। अरे भाई, बुलेट से अचानक स्कूटी पर कैसे आ गये प्रभु?
क्या बतायें, प्रकाश भाई। बुलेट आज मैडम ले कर चली गयी हैं।
लो जी, एक और आश्चर्य मैडम, बुलेट.... महिला सशक्तिकरण को केतना ऊपर पहुंचाये दिए सुजीत बाबू और इधर हम अखबारों मे घुसल रह गये।
धन्य होते हो मोदीजी, बुलेट ट्रेन चलवाते-चलवाते महिलाओं से बुलेट वाहन चलवाने लगे आपकी महिमा सच मे अपरम्पार है।
सालों पहले बेलन महिलाओं की समानार्थी हुआ करती थी पर अब तो पता नही क्यूं जब कभी बेलन का ख्याल मन मे आता है मुझे सिन्हाजी की अधिक याद आने लगती है।
करूण रस के पर्याय हमारे सिन्हाजी। माथे पर चुहचुहाती पसीने की बून्दें, अपने काम मे अपस्यांत, रसोई के दरवाजे पर हाथों मे बेलन थामे दो पल को दम मारने को खड़े हुए अबला नाम की बला को ढोते हुए हमारे सिन्हा जी।
अपनी बारी का ईंतजार कर रहे हैं बिचारे।
कभी-ना-कभी तो सरकार जरूर पुरूष सशक्तिकरण भी चलईहन मर तब तक पता नही बेचारी यह देह रहे ना रहे।
मन मे एक सवाल कौंधा। अपनी चहारदीवारी के भीतर क्या सुजित बाबू भी?
फिर से मन सहज विश्वास करने को तैयार नही हुआ। माने सुजित बाबू भी बेलन चला लेते होंगे?? अगर मैडम बुलेट चला रही हैं तो घर मे बेलन भी कोई चला ही रहा होगा। दुनिया ही ऐसी है।
बाहर बनतहिं शेर बहुत हैं मोहन, मदन, मुरारी जी।
कान्हा नाचे व्रिन्दावन मे घर मे रान्हिहन तरकारी जी।।
मै कवि हूं जहां-तहां विचरता हूं और जहां नही भी जाता अपनी कल्पना शक्ति को वहां पहुंचाने का प्रयत्न करता हूं। झूठ नही बोलूंगा दिन भर चाहे जहां कहीं भटक लूं शाम को मेरा भी ठौर है और हां घर की रसोई कोई इतनी भी बुरी जगह नही है जी कि आप मुझे करूण नजरों से देख रहे हैं।

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