बात निकल चुकी थी
वापिस लौटानी मुश्किल थी
बात अब आगे बढेगी
गली-मोहल्ले होकर गुजरेगी
बात चुंकि दिलफ़रेब है
सो अब दिल्लगी भी करेगी।
बेवफ़ा या बे-मुरव्वत जो कह लें
बात आपको ला-जवाब कर दे
जब तक बा-पर्दा थी
हमराज़ और हम-ख़याल थी
जब तक आपने इज्जत बख्शी
बात चौखट के भीतर थी
अब बात चौक-चौराहों पर है
जनाब अपनी ख़ैरियत ढूंढिए।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।
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