मैने सब कहानी सुनायी
बस इक छुपा ली थी
जिसमे तुम थे ही नही
एक भटका हुआ राही था
एक अन्जान सफर
और एक अन्जान शहर।
जब अपना सब खोकर
मै निकला उस शहर से
बेशक तुम्हारी याद आयी थी
मगर मै भुला बैठा था
तुम्हारा नाम पता सब
अब जब भी मिलना
मुझे खुद मे समेट लेना
कि तुम्हारा नाम ही
मेरी पहचान बन जाए।।।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।
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