तुम्हारे होने के हर पल को
मै मुट्ठी भर जी लेता हूं
कि तुम जब नही होगे
मेरी बंद मुट्ठी से निकलकर
अचानक खड़े हो जाओगे
मेरे सामने प्रत्यक्ष, सशरीर
पर इस डर से कि कहीं
फिर से ना खो जाओ तुम
मै भींचे रहता हूं अपनी मुट्ठियां
जैसे तुम्हारा प्रत्यक्ष होना
उतना भी जरूरी नही जितना
कि ये विश्वास है कि तुम हो
मेरी हो और हां यहीं तो हो।
मै मुट्ठी भर जी लेता हूं
कि तुम जब नही होगे
मेरी बंद मुट्ठी से निकलकर
अचानक खड़े हो जाओगे
मेरे सामने प्रत्यक्ष, सशरीर
पर इस डर से कि कहीं
फिर से ना खो जाओ तुम
मै भींचे रहता हूं अपनी मुट्ठियां
जैसे तुम्हारा प्रत्यक्ष होना
उतना भी जरूरी नही जितना
कि ये विश्वास है कि तुम हो
मेरी हो और हां यहीं तो हो।
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