प्रेरित
प्रिय परबतिया
परसू तुमको अपना दुआरी से आगे मेहमानजी के साथे जाते देखे से कलेजा कुहर गया। वैसे त मेहमानजी बरा भला लोक बुझाते हैं पन तुम तो जानती होगी हमरे दिल का हाल। तुम्हको रात-दिन टकटकी लगा के देखते हम सियान हूए थे आ जे बावड़ी सीटना सीखे थे। पर जो होनी को मंजूर। जै सियाराम।
तोहर सादी मे हम जानके दही का मटकूरा उठा लिये थे जे लोक सभ समझे कि इ अपने जोर मे मगन है आ हमर नोर छिपा जाय।
बियाह से पहिले हम केतना जे तुमको इशारा दिये। एक बार त हम जान के सेन्दुर का किया ओसारे पर छोर दिये थे। केतना बार मरद सिनेमा बला रुभिया तुमसे पियार हो गया सादी करें जे कीने से गाना फुल्ल साउंड मे बजाए। तोहर किरिया हम तुमको एगो चिट्ठीयो फुलवतिया दिया भेजिस थे मर उ मुंहझौंसी अपन मतारी को जा के दे दी थी आ रामपियरवा हमरा केतना हुज्जत केया था। ओकरा जे लगा के ओकर मेहरारू को हम चिट्ठीया भेजे हैं।
तुमको भी काहे कुछौ जहें जब नसीबे जरल था। महीस चराते-चराते हम पांचमे मे लटपटा गये आ तुम ऐमे बीए पढ लिये से हम सभ बात मोने मे रख लिए।
तोहर बडका ननकिरवा आब सीयान हो गया है, टुभलुस-टुभलुस हेलो हाइ करता है, बुझनुक लगता है। उसको देखी के आंखी जुरा जाता है। तोरे अईसन ठोकल नाक है ओकर। आगे तुमसे कहना था कि बच्चा सभ जो हमको मामा-मामा कहता है सो संगी-साथी, दोस महीम सभ हमको चिढाता है। तुम्हरा भाभी (हमर परिवार) भी तुमको देखती है त हमरे से मसखरी करे लगती है।
अभकी आना त हमर दलान दीस ताक देना हमर कलेजा जुड़ा जाता है।
परणाम आ शुभ आसीस।
तोहर
पियारे राम।
प्रकाश रंजन
Sunday, 2 April 2017
प्रिय परबतिया
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