Sunday, 2 April 2017

श्रीमति

मोबाइल पर हर इक आहट से
चौंकता हूं, अबकी पक्का वही होगी॥
अलार्म बन कर मुझे उठानेवाली
साथ न होकर भी (मायके मे है)
अपनी मौजूदगी दर्शाने वाली॥
मेरे दवा-दारू (दारू का ज्यादा) का
मुझसे ज्यादा हिसाब रखने वाली॥
दहशतजदा होता हूं दूर रहकर भी
क्या करता हूं, किसके साथ होता हूं,
कितने बजे नींद खुली कब मै सोता हूं॥
सब खबर है उनके पास जैसे उन्होने
सीसीटीवी लगवा रखा हो मुझमे ही
या फिर हैं वो काले जादू की मालकिन॥
अब आज कहीं गुम हैं तो लगता है कि
जैसे मुर्गे ने बांग ही नही दी होगी उधर या
सूरज सुबह करना ही भूल गया हो कहीं॥
प्रकाश रंजन

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