मैने ढूंढा था तुम्हे, उन रस्तों पर
जिनसे तुम आती जाती थी।
उन पर भी जहां तुम्हारे
होने की ना थी कोई आश।
पर नन्हे परों से नही लांघ सका
मै अंतहीन आसमान को।
थकता गया दुनिया की भीड़ मे
खुद को ही खोता चला गया मै।
आज नींद खुली भी तो क्या जब
ले के जा रहे लोग मुझे उस तरफ।
मैदान मे जिधर लगे हुए हैं अनेको पत्थर
और कुछ नाम जिन पर है लिखे हुए।।
प्रकाश रंजन
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