चल बचपन की दौड़ लगा दें
चल उड़ जाते हैं अम्बर मे
करते हैं चिड़ियों से बातें
फुर्र हो जाते हैं पल भर मे।
चल छुप कर घर के कोने मे
गिनते हैं सौ-सौ की बोली
देकर धप्पा इक-दूजे को
चल खेलें हम आंख-मिचौली ।।
चल गुड़िया को सजा-धजा कर
बन जाते हम सब बाराती
रिश्तों की गुत्थी सुलझाकर
चल सीखें जीवन की पाती।।।
पल मे करते अक्कड़-बक्कड़
फिर बनते हम चोर-सिपाही
पल मे लड़ते जी भर कर हम
बन जाते पल मे हमराही।।।।
चल घूमें हम गोल-गोल फिर
जीवन को चल चाह नयी दें
चल ढूंढें फिर से बचपन को
जीवन को चल राह नयी दें।।।।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।
चल उड़ जाते हैं अम्बर मे
करते हैं चिड़ियों से बातें
फुर्र हो जाते हैं पल भर मे।
चल छुप कर घर के कोने मे
गिनते हैं सौ-सौ की बोली
देकर धप्पा इक-दूजे को
चल खेलें हम आंख-मिचौली ।।
चल गुड़िया को सजा-धजा कर
बन जाते हम सब बाराती
रिश्तों की गुत्थी सुलझाकर
चल सीखें जीवन की पाती।।।
पल मे करते अक्कड़-बक्कड़
फिर बनते हम चोर-सिपाही
पल मे लड़ते जी भर कर हम
बन जाते पल मे हमराही।।।।
चल घूमें हम गोल-गोल फिर
जीवन को चल चाह नयी दें
चल ढूंढें फिर से बचपन को
जीवन को चल राह नयी दें।।।।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।
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