आशिकी मे
वो भी मुकाम था
ख़ादिम जवान था
बाहों मे सारा जहान था
तब कहते थे
तुम इश्क हो, ईमान हो
इंसान नही, भगवान हो
अब जब ख़ादिम खंडहर है
उठा कैसा यह बवंडर है
कि जब बिजली गिराते थे
चमन आबाद होता था
जो अब नजरें चुराते हैं
कहते हो 'खुदा की खैर'
तब कहते थे
कर लें नजरे इनायत
इस 'कनीज' पर भी कभी
अब चिल्लाते हो, कहते हो
बड़ा दीदे फाड़ कर देखता था
'कमबखत'!
वो भी मुकाम था
ख़ादिम जवान था
बाहों मे सारा जहान था
तब कहते थे
तुम इश्क हो, ईमान हो
इंसान नही, भगवान हो
अब जब ख़ादिम खंडहर है
उठा कैसा यह बवंडर है
कि जब बिजली गिराते थे
चमन आबाद होता था
जो अब नजरें चुराते हैं
कहते हो 'खुदा की खैर'
तब कहते थे
कर लें नजरे इनायत
इस 'कनीज' पर भी कभी
अब चिल्लाते हो, कहते हो
बड़ा दीदे फाड़ कर देखता था
'कमबखत'!
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