Thursday, 1 August 2019

आंखों के दो कोर तेरी यादों के हवाले है



आंखों के दो कोर तेरी यादों के हवाले है
इन छलकते आंसूओं पे मेरा इख्तियार नही है
जानता हूं कि इस जनम ना होगें रूबरू अब
नादान दिल मगर समझने को तैयार नही है
सर पर तेरा साया था और जीते थे बेपरवाह
मेरा अल्हड़ बचपन लौटने को तैयार नही है
ये ही घर था बिखरी थी सब तरफ रानाइयां
बहारों का मौसम आए अब ईंतजार नही है
तुम तो कहते थे खेल-खेल मे कट जाएगा
कह दो फिर यह जीवन है मंझधार नही है
चलो सुना दें दुनिया को जीवन गीत 'शैल'
बड़ी बेवफा है सांसें इनका ऐतबार नही है

No comments:

Post a Comment