मेरी बंद मुट्ठीयों मे
मेरे जीवन भर का 'शून्य' है
जाने-अन्जाने
इस 'शून्य' को ही
मै 'तुम' समझ लेता हूं
और भींचे रहता हूं
अपनी बंद मुट्ठीयां
इस डर से कि कहीं
खो ना दूं मै तुम्हें
इस 'शून्य' से ही पूर्ण होता मै
शायद खुदगर्ज हो चला हूं
अब इसे खो नही सकता
हां तेरे बिन जी नही सकता।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।
मेरे जीवन भर का 'शून्य' है
जाने-अन्जाने
इस 'शून्य' को ही
मै 'तुम' समझ लेता हूं
और भींचे रहता हूं
अपनी बंद मुट्ठीयां
इस डर से कि कहीं
खो ना दूं मै तुम्हें
इस 'शून्य' से ही पूर्ण होता मै
शायद खुदगर्ज हो चला हूं
अब इसे खो नही सकता
हां तेरे बिन जी नही सकता।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।
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