Thursday, 1 August 2019

वो छत पर खड़ी है

वो छत पर खड़ी है
चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए
देख रही एकटक
इधर ही इसी तरफ शायद।
उसने हाथ हिलाया है
कोई इशारा या
किसी को बुलाया हो शायद
उसके होंठ हिल रहे हैं
वो गुनगुना रही है
रूमानी कोई गीत शायद
वो बातें कर रही है
फोन पर हंस-हंस कर
अपने आशिक से शायद।
अब वो बैठ गयी है
उदास नजरें नीची किए
कोई याद आया हो शायद
उसके लक्षण ठीक नही
अवश्य कोई चरित्रहीन है
शरीफ लोगों का अब
इस बस्ती में रहना मुश्किल है।।।

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