जब भी मेरी सांसें
खत्म होती दिखती हैं
मै मांग लेता हूं
उधार की चंद सांसें
और बढता है आगे
मेरा जीवन सफर
यूं ही बे-मकसद, बे-सबब
कभी इन सांसों का बोझ
असह्य हो उठता है
तब यादों मे ढूंढता हूं
मै तुम्हारा चेहरा
मेरी तन्हाइयों से झांकती
मुस्कुराती हुयी तुम
मुझे जीवन से जोड़ती हो
और मजबूर होता हूं मै
सांसों का बोझ ढोने को
अंतहीन सिलसिला
यूं ही बे-मकसद, बे-सबब।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।
खत्म होती दिखती हैं
मै मांग लेता हूं
उधार की चंद सांसें
और बढता है आगे
मेरा जीवन सफर
यूं ही बे-मकसद, बे-सबब
कभी इन सांसों का बोझ
असह्य हो उठता है
तब यादों मे ढूंढता हूं
मै तुम्हारा चेहरा
मेरी तन्हाइयों से झांकती
मुस्कुराती हुयी तुम
मुझे जीवन से जोड़ती हो
और मजबूर होता हूं मै
सांसों का बोझ ढोने को
अंतहीन सिलसिला
यूं ही बे-मकसद, बे-सबब।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।
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