Thursday, 1 August 2019

मित्रों के संग बहुत दिनों के



मित्रों के संग बहुत दिनों के
बाद पीऊंगा मै हाला
पहले जी भर दूंगा गाली
फिर टकराएगा प्याला
इक पर इक सब पीने वाले
सागर कम पर जाएगा
जब तरंग छाएगा सब पर
रच देंगे इक ' मधुशाला'।
कान्हा होगा वृन्दावन मे
मै तो कहता हूं लाला
अफसर होगा बहुत बड़ा पर
साकी बन भरता प्याला
झट जाए वो सुट्टा लाने
झट सुलगाएगा ज्वाला
हाकिम और अमले का ऐसे
फर्क मिटाती मधुशाला।
सबकी अपनी अदा निराली
सबकी अपनी है हाला
सबके अपने ठाठ बड़े हैं
सबका अपना है प्याला
दो घूंट पी कोई बस कहता है
कोई घट-घट पीने वाला
जिसकी जितनी प्यास बड़ी है
उसको मिलती उतनी मधुशाला।
कोई बहक कर संजीदा हो
राज सुनाएगा गहरे
कोई नशे मे उन्मत्त होकर
मुझे बुलाएगा साला
देख के इन मतवालों को
ना विस्मृत हो जाएं कहीं
इक युग पर खुलकर जीते हैं
इनसे जी जाती है मधुशाला।
इक मंजिल पाने को बस
है भुला दिया हमने हाला
दो पग जीवन पथ चलकर
है खो डाला हमने प्याला
अपना बस इक नाम बने
क्या हमने यह कर डाला
जीवन की कीमत मे हम
खो बैठे अपनी मधुशाला।

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