Thursday, 1 August 2019

आखिरी सफर कोई असर छोड़ जाता हूं

आखिरी सफर कोई असर छोड़ जाता हूं
अपने इश्क की इक नज़र छोड़ जाता हूं।।
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जब मिलोगे तुम सनम पूछोगे मेरा हाले दिल
बेकरार दिल कि थोड़ी ख़बर छोड़ जाता हूं।।
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तकते रहे हर घड़ी नजरे इनायत हों इधर
अंधियारी रातों को मै सहर छोड़ जाता हूं।।
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हर गली लगते ठहाके और होता कहकशां
जिंदादिल शहर थोड़ी जहर छोड़ जाता हूं।।
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चर्चे तेरे इश्क के हों या बेवफाई के सनम
हो तेरी रूसवाईयां मै शहर छोड़ जाता हूं।।
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इश्क की इन तंग गलियों मे जिधर गुजर गये
खूने-जिगर दर्द की इक लहर छोड़ जाता हूं।।
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मौत का सन्नाटा और सहमी-सहमी है फिजां
चीखते हैं मुर्दे मैं अब कबर छोड़ जाता हूं।।
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जब हुए हलकान और परेशान राहों मे गिरें
हो बेगाने इश्क की मै डगर छोड़ जाता हूं।।
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चल दिए नजरें बचाकर इस जहां से 'शैल' हम
शिकवा करूं किसे के मै सफर छोड़ जाता हूं।।
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प्रकाश रंजन 'शैल', पटना।

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