Thursday, 1 August 2019

सहर

हुयी है शाम तो कल सहर भी होगा
बिन तेरे ही सही मेरा बसर भी होगा।।
तेरे आंगन मे हो चांद-तारों से रोशनी
अंधेरों मे हो मगर मेरा गुजर भी होगा।।
तू उड़ती रह आसमान मे पंछी बन कर
गिरते-पड़ते कदम मेरा सफर भी होगा।।
क़ायनात की हर खुशीयां तुझे मुबारक
मेरी जानिब आंसूओं का मंजर भी होगा।।
तमाम उम्र तेरे लबों से अमृत पीते रहे
क्या था मालूम पीने को जहर भी होगा।।
तेरी गैर से मोहब्बत की जड़ें हों गहरी
आँधीयों मे डोलता इक शजर भी होगा।।
इस जनम तन्हा रहलें तेरी खातिर 'शैल'
मेरे कब्र पर मगर तेरी आंखें तर भी होगा।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

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