Thursday, 1 August 2019

प्यार 'चन्द्रमा' है

प्यार 'चन्द्रमा' है
धटता है, बढता है
कभी पूर्ण होता है
कभी शून्य होता है।।
प्यार 'तारे' हैं
कमजोर, क्षणभंगुर
सुहानी रात टिमटिमाते हैं
बुझते हैं, मिट जाते हैं ।।
प्यार 'सूरज' है
आग का गोला
बेरहम तपिश से
झुलसा देता है तन-मन।।
प्यार 'धरती' है
घूमती है चारों तरफ
और धूरी है इसकी
शायद तू ही।।
प्यार 'मै' हूं
तुम्हारे होने से हूं
नहीं तो हूं
निर्रथक और निस्प्राण।।
प्यार 'तुम' हो
हो भी और नही भी
मेरी सर्वस्व हो या
हो इक 'पाषाण प्रतिमा'।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

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