Thursday, 1 August 2019

इक ख्वाब हाथ से फिसल गया

इक ख्वाब हाथ से फिसल गया
और दूर बहुत वो निकल गया
उसके होने का अर्थ मुझे 
तब पता लगा जब रूठ गया
हुयी सांसें बोझिल और जटिल
लगे जीवन जैसे छूट गया
वह ख्वाब बढा अपने पथ पर
ना थी मेरी अब उसे कदर
जीवन के थे पर कठिन डगर
देखा उसने पीछे मुड़ कर
जो ख्वाब था मेरी आंखों का
थी उसकी हस्ती मिट्टी भर
देखो जीवन की अजब कथा
किसे कौन कहे अपनी व्यथा
मेरे जीवन मे था कसक अगर
रहा ख्वाब भी तन्हा जीवन भर।।

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