Thursday, 1 August 2019

कभी तुम रब बनाते हो

कभी तुम रब बनाते हो
कभी दिल मे छुपाते हो
कभी अपना बताते हो
कभी सब भूल जाते हो।।
कभी कहते हो मुझ सा
दूसरा न है कोई जग मे
कभी काफिर बताते हो
कभी इल्जाम गढते हो।।
तेरे हर इक फसाने पर
पड़ेंगे गांठ रिश्तों मे
मेरी जाना ये जीवन है
इसे तुम खेल कहते हो।।
कहां कहते हैं तुमको हम
बिठा लो अपने पलकों पर
गिराओ गर अगर हमको
न टूटें हम करम कह दो।।
कि मै हूं मीत या वैरी
यह इक बार तय कर लो
हमारी इल्तिजा सुन लो
न बदलोगे ये तुम कह दो।।
मै इनसां हूं या हूं शैतान
न मुझको हो भ्रम कोई
कि मैने कब कहा तुमसे
मुझे भगवान तुम कह दो।।
कि मै मै ही बना रह लूं
इनायत हो फक़त इतनी
सितम जो ढा रहे हो तुम
इसे अब आखिरी कह दो।

तुम्हारे होने के हर पल को

तुम्हारे होने के हर पल को
मै मुट्ठी भर जी लेता हूं
कि तुम जब नही होगे
मेरी बंद मुट्ठी से निकलकर
अचानक खड़े हो जाओगे
मेरे सामने प्रत्यक्ष, सशरीर
पर इस डर से कि कहीं
फिर से ना खो जाओ तुम
मै भींचे रहता हूं अपनी मुट्ठियां
जैसे तुम्हारा प्रत्यक्ष होना
उतना भी जरूरी नही जितना
कि ये विश्वास है कि तुम हो
मेरी हो और हां यहीं तो हो।

ख्वाबों की सुबह

ख्वाबों की सुबह
पंछियों का कलरव
क्षितिज पर छायी
सूरज की लालिमा
उम्मीद की किरणों से
रौशन होते ख्वाब।।
तपती दुपहरी
दहकता सूरज
माथे पर चुहचुहाती
पसीने की बूंदें
थके हुए ख्वाब
ठौर तलाशते ख्वाब।।
शाम का धुंधलका
घिरता अंधेरा
झींगुरों का शोर
फैला चारों ओर
सहमे से ख्वाब
डरे हुए ख्वाब।।
मौत की खामोशी
अंधकार का साम्राज्य
काली चादर ओढकर
घिर आयी है रात
ख्वाब अब सो गये हैं
ख्वाब कहीं खो गये हैं।।

मुफ्त मे बदनाम

ना नूर है ना जीस्त ही
ना मैकदे ना जाम
ना सांसें हैं ना शोर है
ना गु़रबतें ना दाम
शैल हम हैं मुफ्त मे बदनाम।
ना इश्क है ना महजबीं
ना दुआ ना सलाम
ना दिल है ना है धड़कनें
ना वफा ना इल्जाम
शैल हम हैं मुफ्त मे बदनाम।
ना दीद है ना चांदनी
ना रात ना गुलफाम
ना वस्ल ना बोसे मिलें
ना शब-ए-गम ना एहतराम
शैल हम हैं मुफ्त मे बदनाम।
ना खुदा ना संगदिल सनम
ना आगाज ना अंजाम
ना वस्ल है ना हिज्र ही
ना सहर है ना शाम
शैल हम हैं मुफ्त मे बदनाम।

आशिकी मे वो भी मुकाम था

आशिकी मे 
वो भी मुकाम था
ख़ादिम जवान था
बाहों मे सारा जहान था
तब कहते थे 
तुम इश्क हो, ईमान हो
इंसान नही, भगवान हो
अब जब ख़ादिम खंडहर है
उठा कैसा यह बवंडर है
कि जब बिजली गिराते थे
चमन आबाद होता था
जो अब नजरें चुराते हैं
कहते हो 'खुदा की खैर'
तब कहते थे
कर लें नजरे इनायत
इस 'कनीज' पर भी कभी
अब चिल्लाते हो, कहते हो
बड़ा दीदे फाड़ कर देखता था
'कमबखत'!

मिरे जाने से पहले इजहार-ए-वफा हो जाए

मिरे जाने से पहले इजहार-ए-वफा हो जाए
तेरे दिल मे भी मचलते जज्बात हो अगर।

ना वस्ल की कमी ना कू-ए-दिल ही रौशन
यार से मेरे मिलने के ऐसे हालात हो अगर।

बहा देते हम भी दरया-ए-गम-ए-जीस्त
इन निगाहों की निगाहों से बात हो अगर।

खुदा ने बख्शी पर जिंदगी रह गयी बेजार
भीग लेते हम खुशीयों की बरसात हो अगर।

क्यूं ना अड़ जाउं मै अपना हक पाने को
तू मिरी जीस्त खुदा की सौगात हो अगर।

जी लें जिंदगी आज ऐसे जैसे कल होना नही
मेरे नसीब और भी क्यामत के रात हो अगर

जाना होता है हर मुसाफिर को एक दिन शैल'
सफर मे कितने भी रखे एहतियात हो अगर।।
प्रकाश रंजन 'शैल'

न वस्ल चाहिए

न वस्ल चाहिए 
न सकून-ए-दिल
न कोई अहसास
न तमन्ना है कि
तू रहे दिल के पास
मुझे इतनी वफा चाहिए
मेरे ख्वाबों मे तू आती रहे
बस इतनी जफा चाहिए।
न खुदा की इबादत
न वजू चाहिए
न कोई आरजू
न जुस्तजू चाहिए
बख्श इतनी दौलत मौला
बस इतनी अदा चाहिए
कि जब हों सुपुर्दे खाक
तेरे दिल से निकले इक आह
और तेरी आखिरी सदा चाहिए।।

मैं ढूंढा करता था

मैं ढूंढा करता था
अपने ख्वाबो-ख्यालों के परे भी
वो मकान अक्सर ही
जिसकी दीवारें ऐसी थी और दरवाजे वैसे थे
जिसमे कुछ खिड़कियाँ थी
जैसा कि होती है हर घर मे अमूमन और
जिसकी बालकनी मे खड़े रहते थे तुम!
आज सालों बाद दिख गया
मुझे मेरा मकान जो बिल्कुल वहीं था
उसी गली मे उसी जगह
सालों से वह वहीं तो था
मै ही अपनी नीमख्याली मे
भटकता फिर रहा था इधर-उधर।
शायद मेरी तलाश खत्म हो
शायद जीवन मुकम्मल हो चला हो
शायद अब भी उस बालकनी मे आती हो तुम
शायद अब भी दरख्तों के पीछे से चांद दिखता हो

मित्रों के संग बहुत दिनों के



मित्रों के संग बहुत दिनों के
बाद पीऊंगा मै हाला
पहले जी भर दूंगा गाली
फिर टकराएगा प्याला
इक पर इक सब पीने वाले
सागर कम पर जाएगा
जब तरंग छाएगा सब पर
रच देंगे इक ' मधुशाला'।
कान्हा होगा वृन्दावन मे
मै तो कहता हूं लाला
अफसर होगा बहुत बड़ा पर
साकी बन भरता प्याला
झट जाए वो सुट्टा लाने
झट सुलगाएगा ज्वाला
हाकिम और अमले का ऐसे
फर्क मिटाती मधुशाला।
सबकी अपनी अदा निराली
सबकी अपनी है हाला
सबके अपने ठाठ बड़े हैं
सबका अपना है प्याला
दो घूंट पी कोई बस कहता है
कोई घट-घट पीने वाला
जिसकी जितनी प्यास बड़ी है
उसको मिलती उतनी मधुशाला।
कोई बहक कर संजीदा हो
राज सुनाएगा गहरे
कोई नशे मे उन्मत्त होकर
मुझे बुलाएगा साला
देख के इन मतवालों को
ना विस्मृत हो जाएं कहीं
इक युग पर खुलकर जीते हैं
इनसे जी जाती है मधुशाला।
इक मंजिल पाने को बस
है भुला दिया हमने हाला
दो पग जीवन पथ चलकर
है खो डाला हमने प्याला
अपना बस इक नाम बने
क्या हमने यह कर डाला
जीवन की कीमत मे हम
खो बैठे अपनी मधुशाला।

पर जाना हैं तुम्हें



सुरमई शाम है
पलकों पर सजे हैं
ढेर सारे ख्वाब
आंखों मे चमक है
अधरों पर मुस्कान
पर जाना है तुम्हें
ख्वाहिश यह मेरी
पा लूं एक दिन तुम्हे
हाथों मे लिए तेरा चेहरा
निहारता फिरूं अपलक
खुदा मेहरबां है
पर जाना है तुम्हें
ख्वाबों पे दस्तक हुयी
फिजाओं मे संगीत घुला है
वही परिचित देह-गंध
नथूनों मे समायी है
तमन्नाएं बेकाबू हैं
पर जाना हैं तुम्हें
मन उदास है
बेकल और बेचैन
आंखों के कोर से
ढलक आते हैं आंसू
सांसे बोझिल हैं
पर जाना हैं तुम्हें

आंखों के दो कोर तेरी यादों के हवाले है



आंखों के दो कोर तेरी यादों के हवाले है
इन छलकते आंसूओं पे मेरा इख्तियार नही है
जानता हूं कि इस जनम ना होगें रूबरू अब
नादान दिल मगर समझने को तैयार नही है
सर पर तेरा साया था और जीते थे बेपरवाह
मेरा अल्हड़ बचपन लौटने को तैयार नही है
ये ही घर था बिखरी थी सब तरफ रानाइयां
बहारों का मौसम आए अब ईंतजार नही है
तुम तो कहते थे खेल-खेल मे कट जाएगा
कह दो फिर यह जीवन है मंझधार नही है
चलो सुना दें दुनिया को जीवन गीत 'शैल'
बड़ी बेवफा है सांसें इनका ऐतबार नही है

मुझे पता नही

मुझे पता नही 
मै कौन हूं?
जीवन के रहस्य
मै नही जानता।
अपने-पराए सगे-संबंधी
कौन हैं ये सब-के-सब?
क्यूं बने हैं ये रिश्ते-नाते?
सूरज की रोशनी
चारों दिशाएं
पशु-पक्षी, नदी-नाले
झड़ने-पहाड़?
और क्यूं
चांद की धवल किरणों से
जगमगाता है संसार?
क्यूं बनी है यह सृष्टि
इसके हरेक अणु
अनगिनत इच्छाएँ?
क्यूं मुझे इनकी जरूरत है?
जबकि मै तो
संपूर्ण हो सकता हूं बस तुमसे।
मेरे अस्तित्व के लिए
तुम्हारा होना ही काफी है।

फिर से बच्चे बन जाते हैं।

चल कोई जुगत लगाते हैं
फिर से बच्चे बन जाते हैं।
चेहरे पर सजा कर हम
मासूमियत भरी मुस्कान
तल्खियों को विदा कर आते हैं
फिर से बच्चे बन जाते हैं।
चल जीते हैं खुल कर बिंदास
या किसी कोने में छुप कर
अब उम्र को धता बताते हैं
फिर से बच्चे बन जाते हैं।
चल छोड़ते हैं यह अंधी-दौड़
जीवन की भेड़-चाल और
दो रोटी मां के हाथ की खाते हैं
फिर से बच्चे बन जाते हैं।
जीवन के दिन चार, उलझनें बहुत
मांग एक चवन्नी पापा से हम
चल सारे ख्वाब सजा आते हैं
फिर से बच्चे बन जाते हैं।
शहर के सरपट सड़कें छोड़
टेढी पगडंडियों पर फिसलते
चल अपने घर वापिस आते हैं
फिर से बच्चे बन जाते हैं।
भर चुका है इन फिजाओं में
नफरत का जहर ‘शैल”
प्यार के दो गीत गुनगुनाते हैं
चलो हम बच्चे बन जाते हैं।।

कुछ बदला-बदला था

कुछ बदला-बदला था
अरसे बाद हमारा मिलना
तूने देखा भी मुझे या
इधर-उधर देखते रहे तुम
शायद बचना चाहते थे
मैने तुम्हारी नजरों को
खुद केन्द्रित देखा ही नही
कोशिश की थी जतन भर
की बस घूरने लगो मुझे
इतना की खुद मे शर्मा जाऊं
बच से रहे थे तुम या फिर
नही चाहते थे रुसवा करना
पर मैने महसूस किया था
तुम्हें पूरी-पूरी शिद्दत से
खुद को अपने होने को भी
इतना की मेरी ही देहगंध
मेरे नथुनों से टकरायी थी
अरसे बाद मैने खुद को और
अपने होने को महसूस किया था
अर्सा क्या युग कह सकते हो
अब लगता है मैने तुम्हे नही
खुद को ही अर्से बाद देखा
क्यूंकि अर्से बाद तुम पास थे
और तुम्हारे होने से मै थी
अपने पूर्णता और अपने
पूरे वजूद के साथ अरसे बाद।

मिल जाती फिर से

मिल जाती फिर से
वो एक 'चवन्नी' जिससे 
खरीद सकते थे 'सपने'
जीवन की वो 'मिठास'
जो पांच पैसे वाले
'लेमनचूस' मे होती थी
आसमान मे पेंच लड़ाते
वो रंग-बिरंगे पतंग
जिसे पाने की खातिर
हम मीलों दौड़ सकते थे
रूपये की दस आती थी
अब क्यूं नही घूमती 'जिंदगी'
उस 'लट्टू' के जैसे
बिना रूके और बेमकसद
जाने कहां गुम हो गये
कंचों के लिए लड़ते
वो बिना 'मतलब' के दोस्त
जाने कहां खो गयी
वो खूबसूरत सी 'जिंदगी'
'बचपन' की कीमत देकर
जिसे पाने को हम बड़े हो गये।

हूक

रह-रह कर,
एक हूक उठती है सीने मे
तीखी-कड़वी
मन कसैला करनेवाली
नही, मैं याद नही करता तुझे
व्यस्त हूँ जीवन मे
तेरी यादों के लिए वक्त कहाँ है
बस इक हूक उठती है कभी-कभी
थोड़ा-थोड़ा चुनकर
समेट लिया है खुद को
खुश भी हूँ जीवन से
कोई गिले-शिकवे नही
अविरत धारा सा बहता जीवन
ख्यालों मे भी तेरे लिए
जगह नही छोड़ी मैने
तू अघटित घटना सी है अब
कोई वजूद नही बाकी जिसका
घिस-घिस कर मिटाया है
अपने तन से मन से
तेरे अहसासों को
बच गया है बस यही
कभी- कभी सीने मे उठनेवाली हूक
तीखी-कड़वी
मन कसैला करनेवाली

वो छत पर खड़ी है

वो छत पर खड़ी है
चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए
देख रही एकटक
इधर ही इसी तरफ शायद।
उसने हाथ हिलाया है
कोई इशारा या
किसी को बुलाया हो शायद
उसके होंठ हिल रहे हैं
वो गुनगुना रही है
रूमानी कोई गीत शायद
वो बातें कर रही है
फोन पर हंस-हंस कर
अपने आशिक से शायद।
अब वो बैठ गयी है
उदास नजरें नीची किए
कोई याद आया हो शायद
उसके लक्षण ठीक नही
अवश्य कोई चरित्रहीन है
शरीफ लोगों का अब
इस बस्ती में रहना मुश्किल है।।।

जिंदगी का मेरे कुछ ठिकाना रहे

जिंदगी का मेरे कुछ ठिकाना रहे
बज्म मे तेरा आना-जाना रहे।
तुझसे रौशन रहे मेरे दिल की गली
मेरी खातिर तेरा मुस्कुराना रहे।
तेरी नजरें शर्म से जो झुकती रहें
हर अदाएं मगर कातिलाना रहे।
जो थे वादे तेरे सब हैं बिखड़े पड़े
अब सदा जो भी हो वो निभाना रहे।
हर सदाएं मेरी तुझको पाने की थी
क्यूं दिलों के दरम्यां ये जमाना रहे।
इस जनम मे ना तुझसे मुलाकात थी
फिर जनम ले सकें इक बहाना रहे।
'शैल' फिर लौट आएं जमीं पर अगर
उनके दिल मे मेरा आशियाना रहे।

मां मै बड़ा हो गया हूं

मां मै बड़ा हो गया हूं
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं
पंख फैलाता हूं और
दूर निकल जाता हूं मै
कदमों मे रख दुनिया 
खुद पे इतराता हूं मै
मां मै बड़ा हो गया हूं
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं।
कोई भी मुसीबत हो
खुद ही निबट लेता हूं मै
बिंदास जीता हूं और
आंसूओं को पी लेता हूं मै
दुनिया कमजोर ना कह दे
मै दिल का कड़ा हो गया हूं
मां मै बड़ा हो गया हूं
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं।
जेब मे चंद सिक्के रख
जरूरतें खरीद लाता हूं मै
अपने मन के खाली कोने को
कुछ यूं ही बहलाता हूं मै
कितना भोला था मां
थोड़ा चिड़चिड़ा हो गया हूं
मां मै बड़ा हो गया हूं
अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूं।।

कोमल मन है झेल ना पाऊं

कोमल मन है झेल ना पाऊं
दुनिया के ये रगड़े 'मां'।
ढूंढता फिरता आंचल तेरी 
करके सबसे झगड़े 'मां'।।
होती है तकलीफ मुझे 'मां'
दिल से आह निकलती है।
छांह नही तेरे ममता की
मुझको बड़ा रूलाती है।।
भीड़-भड़ी इस दुनिया मे
है निश दिन लगता मेला 'मां'।
इस मतलब की दुनिया मे
पर मै हूं निपट अकेला 'मां'।।
बोल नही पाता तुझको
'मां' मन-ही-मन मैं रोता हूं।
थक कर जब निढाल रहूं
जब भूखे पेट मै सोता हूं।।
बड़ा हुआ था क्या पाने को
जब तू 'मां' मेरे पास नही।
तेरे ना होने से 'मां' मुझे
यह जीवन आता रास नही।।
कुछ ऐसा हो कालचक्र मे
फिर से पीछे लौट चलूं।
थाम चलूं तेरी उंगली फिर
सब फिक्र तुझे 'मां' सौंप चलूं ।।
बिना इजाजत 'मां' तेरी
ना घर की देहरी लांघू मैं।
सब सपने पूरे करने को
तुझसे एक चवन्नी मांगू मैं।।।

जब हर पल हो एक युग जैसे

जब हर पल हो एक युग जैसे 
सांसें हों बोझिल घुटी-घुटी
आंखों में आंसू ना हों पर 
पलकें हों थोड़ी झुकी-झुकी
दिल से निकले इक आह मगर 
आवाज हो थोड़ी दबी-दबी
दिल मे जीने की चाहत हो
धड़कनें मगर हों रूकी-रूकी
तब आना हौले से प्रियतम
मुझे अंतिम गीत सुनाना तुम
मेरे सर को अपनी गोद मे रख
मुझे मीठी नींद सुलाना तुम
हो हर फूलों मे अक्श तेरे
जो कब्र पे मेरे हों बिखड़े
तुझे पाने को जग खो जाउं
तेरे ख्वाबों संग मै सो जाउं
मेरे इश्क का कुछ ईनाम बने
मेरी मौत मे तेरा नाम बने।।।
प्रकाश रंजन 'शैल'!

करना मेरा निर्माण

करना मेरा निर्माण 
फिर विधाता
और बना देना मुझे 
फूलों सा सुंदर
आवाज हो मेरी 
कोयल सी सुरीली
नाचूं मै मोर सा
सबका मन मोह लूं
बस जाउं नजरों मे
दिलों को जीत लूं
पर सुनहरे जीवन का
ख्वाब सजाने को
करना इक करम और
मुक्त कर देना
इस ठूंठ को
जीवन की कैद से।।।
प्रकाश रंजन 'शैल'

मुझको यूं भी कभी आजमाया करो

मुझको यूं भी कभी आजमाया करो
करके सोलहों श्रृंगार पास आया करो
जो दिल मे मचल जाएं हसरतें अगर
मुझपे इल्जाम सैकड़ों लगाया करो।
हाले दिल बेवजह भी जताया करो
मुझपे बिजली भी जाना गिराया करो
दिल तड़प जाए तेरे तबस्सुम से गर
मुझको आवारा शायर बुलाया करो।
तुम इत्तिफाकन मिरे रस्ते आया करो
रश्म-ए-उल्फत भी मुझको सीखाया करो
जो खुदा की ईबादत में सिजदा करूं
मुझको काफिर-गुनहगर बताया करो।
जाना खिदमत मे पलकें बिछाया करो
रूप की लौ से मुझको रिझाया करो
ख्वाहिशें मेरी गर तुझको रूसवा करें
मेरे दिल मे उतर बस जाया करो।
दिन क्यामत के ऐसे दिखाया करो
अपनी आगोश मुझको छुपाया करो
जो अगर रूठ जाउं मै तुमसे कभी
मेरी खातिर तुम्ही मान जाया करो।

अगर कहो तो अपने मन की

अगर कहो तो अपने मन की
व्यथा मैं तुम्हें बताऊं
अगर सुनो तुम ध्यान लगाकर
अपनी कथा सुनाऊं।
बचपन से कुछ ऐसा था
अपनों से भी जुड़ ना पाया
होश संभाले जब मैने
खुद को खड़ा अकेला पाया।
लड़कपन की वय मे आकर
मैने भी कुछ दोस्त बनाये
कुछ कमी ऐसी थी मुझमे
सबने इक-इक पीठ दिखाए।
यौवन की दहलीज को लांघा
इक चेहरे ने मुझे हंसाया
अपनी भीनी खुशबू से
उसने मेरे जीवन को महकाया।
रंग सा गया मैं उसके रंग में
अपने सुधबुध चैन गंवाए
कब सोना है, कब है उठना
ये हर दिन वो मुझे बताए।
जीवन मुझसे रूठ गया तब
वह चेहरा भी छुट गया जब
मुझसे बेहतर साथी पाकर
उसने मुझसे हाथ छुड़ाए।
थम सी गयी जिंदगी मेरी
शिकवा क्या मैं करता उससे
अपनी कमियों को कोसता
रहा घिसटता जीवन पथ पर।
अायी फिर एक रात अंधेरी
किस्मत देखो कितनी न्यारी
सजा धजा कर कब्र को सबने
मुझको मौत की नींद सुलाया।
जीवन की ख्वाहिशें लेकिन
दबी सिसकती रह गयी शमिल
अगला जन्म मैं चाहूं ऐसा
बनूं मै सबके आंख का तारा।

प्रेम वाला फैक्टर

खडा़ हुआ था आस लिए मै
जान बूझकर उस रस्ते पर
गुजरेगी तू अब अगले पल
मुस्काएगी मुझे देख कर।
आ जाए तू पास मेरे और
धड़काए दिल धड़-धड़ धड़-धड़
नाजों से फिर नैन मटक्का
देखूं तुझको आहें भर-भर।
सीने से तू लग जाए जां
अंग-अंग मे बिजली भर कर
होंठो मे जो लाली हो वो
मिलेंगे मुझको प्याले भर-भर।
अश्कों को मै पी जाउं और
जी जाउं मै जीवन खोकर
हो जिस दिन शादी तेरी
मै नाचूं जी भर नागिन बनकर।
बाबुल वाले गीत बजे
सब रोएं मै भी रो लूं जी भर
डोली मे जब बैठ गयी तू
विदा करूं मै नजर चुराकर।
साजन से गलबहियां करते
टकराए तुम उसी रस्ते पर
मुस्काये फिर बड़े दिनों पर
बच्चों से मामू कहवाकर।
#प्रेम वाला फैक्टर।।।।।

नन्हा हरा-भरा कोंपल

वो एक नन्हा हरा-भरा कोंपल 
कृशकाय कोमल और भयभीत
मगर जीवन की चाह से भरपूर
जिसे सींचा मैने अपने लहू से
अपनी इच्छाओं की भेंट चढा
और अपने सर्वस्व को खोकर
मेरे ही किसी कोने से झांकता
भीतर-ही भीतर पनपता हुआ
वह मेरा प्यारा दुलारा कोंपल
धरती मे अपनी जड़ें जमा कर
अब एक बड़ा पेड़ बन चुका है
उसके आगोश मे सिमटते हुए
क्रमशः अपनी पहचान को खोते
मै भी तो कितना बदल चुका हूं
कृशकाय, कोमल और भयभीत

यूं ही चलते हुए

यूं ही चलते हुए इक जमाना हुआ
कुछ फंसाने बने यूं ही चलते हुए
हर कहानी कभी जिन्दगानी बनी
फिर अजनबी बने यूं ही चलते हुए।
यूं ही चलते हुए इक हंसी शाम को
उनकी नज़रें इनायत से महरूम थे
पूछा जाना मेरी इक खता बोल दो
वो बस खामोश थे यूं ही चलते हुए।
मेरी खातिर लटों को झटकते थे जो
कि दिलो-जान मुझपे छिड़कते थे जो
जब किनारा किया मुड़के देखा नहीं
फिर वो गुम हो गये यूं ही चलते हुए।
बनके दिपक मेरे दिल मे जलते रहे
दंभ रस्म-ए-मुहब्बत के भरते रहे
वो हंसी ख्वाब थे या थे नूर-ए-नजर
कब समां ढल गयी यूं ही चलते हुए।
यूं ही चलते हुए मुझसे पूछा किए
मेरे बिन भी हंसोगे क्या साजन मेरे
हम तो रो रो के जीवन से बेजार थे
वो मुस्कुरा भर दिए यूं ही चलते हुए।।
- प्रकाश रंजन 'शैल', पटना।

इक ख्वाब हाथ से फिसल गया

इक ख्वाब हाथ से फिसल गया
और दूर बहुत वो निकल गया
उसके होने का अर्थ मुझे 
तब पता लगा जब रूठ गया
हुयी सांसें बोझिल और जटिल
लगे जीवन जैसे छूट गया
वह ख्वाब बढा अपने पथ पर
ना थी मेरी अब उसे कदर
जीवन के थे पर कठिन डगर
देखा उसने पीछे मुड़ कर
जो ख्वाब था मेरी आंखों का
थी उसकी हस्ती मिट्टी भर
देखो जीवन की अजब कथा
किसे कौन कहे अपनी व्यथा
मेरे जीवन मे था कसक अगर
रहा ख्वाब भी तन्हा जीवन भर।।

मै कौन हूं?

मैने संजीदगी से पुछा
मै कौन हूं?
उसने मुस्कुरा कर कहा
मंदिर का वो घंटा
जिसे जब तब बजा 
मै ईश्वर तक
अपनी पुकार पहुंचाती हूं।।
फिर उसने मुस्कुरा कर पूछा
मै कौन हूं?
मैने संजीदगी से जवाब दिया
तुम मंदिर भी हो
ईश्वर भी और हां
मेरी पुकार भी।।।।

है चंद दिनों की सांसें अब

है चंद दिनों की सांसें अब
खुशबू की तमन्ना क्या होगी
रहता छाती मे दर्द प्रिये
मौसम की तमन्ना क्या होगी
कल रात बड़ा बेचैन रहा
ख्वाबों की तमन्ना क्या हो अब
किसी रात यूं ही सो जाउंगा
वादों की तमन्ना क्या हो अब
गठिया से हूं बेहाल प्रिये
क्यूं इश्क की दौड़ लगाउंगा
नजरों से भी कम दिखता है
मिलने की तमन्ना क्या हो अब
अब चलाचली की बेला है
बस बात मे लज्जत रख लेना
है रूग्ण शरीर, काया निर्बल
जज्बात की इज्जत रख लेना
गर मिलें कभी सम्मान करें
इक दूजे का हम मान करें
जीवन की आ गयी शाम प्रिये
जीने की तमन्ना क्या होगी।।।

आखिरी सफर कोई असर छोड़ जाता हूं

आखिरी सफर कोई असर छोड़ जाता हूं
अपने इश्क की इक नज़र छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
जब मिलोगे तुम सनम पूछोगे मेरा हाले दिल
बेकरार दिल कि थोड़ी ख़बर छोड़ जाता हूं।।
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तकते रहे हर घड़ी नजरे इनायत हों इधर
अंधियारी रातों को मै सहर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
हर गली लगते ठहाके और होता कहकशां
जिंदादिल शहर थोड़ी जहर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
चर्चे तेरे इश्क के हों या बेवफाई के सनम
हो तेरी रूसवाईयां मै शहर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
इश्क की इन तंग गलियों मे जिधर गुजर गये
खूने-जिगर दर्द की इक लहर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@
मौत का सन्नाटा और सहमी-सहमी है फिजां
चीखते हैं मुर्दे मैं अब कबर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
जब हुए हलकान और परेशान राहों मे गिरें
हो बेगाने इश्क की मै डगर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
चल दिए नजरें बचाकर इस जहां से 'शैल' हम
शिकवा करूं किसे के मै सफर छोड़ जाता हूं।।
@@@@@@
प्रकाश रंजन 'शैल', पटना।

बेलगोबना - 1

आज भोरे से उसका मन औनाइल था। आज नही तो कभी नही। भलेन्टाइन डे फेनो अगले साल आएगा तभ तक कोन जाने जिनगी रहे ना रहे। ना ऐसे लटपटाने से नही बनेगा। 
आज कुछ नही से कुछ हो। यार दोस्त सब माथा चटले है। सब चिढाते रहता है लड़की हिन्ट मार रही है और यही मौगा बनल है।
यह लटपटाने वाले शख्स हैंं बेलगोबना या बेलू यानि धरमेनदर यानि धर्मेन्द्र मंडल यानि धरमेनदर चाट एण्ड गोलगप्पे वाले ठेले का प्रोपराइटर। 
शाम से रात तक चाट-फुचका बेचना एवम सुबह से शाम तक सपना के चक्कर मे रहना और रात से सुबह तक सपना के सपने देखना कुल मिला कर यही इनकी दिनचर्या है।
बेलगोबना या बेलू, काला-कलूटा बेलू, चौथी फेल बेलू, बेलू के बाल अधिक काले हैं या गाल ये चर्चा का विषय हो सकता है। 
अंग्रेजी के ए से भी अपरिचित बेलू जब अपने पूरे जीट-जाट मे अंग्रेजी पेपर खोलकर चाय के दुकान पर आकर बैठता था तो देखने वाले हंसते थे। सपना के आने-जाने का समय होगा पक्का।
सपना, चांदी जैसे रंग और सोने जैसे बालों वाली सपना, पिता सरकारी अधिकारी और खुद डाक्टर बनने के सपने संजोए कोचिंग-कालेज को आती-जाती सपना। 
यूं तो अपनी राह चलने वाली मगर फिर भी कभी अगर नजर उठ जाए तो कोयले की खान की तरह दिखने वाला बेलगोबना सामने नजर गड़ाए दिखता। बेचारी कभी चिढती तो कभी नजर अंदाज करती।
इतनी देर की कहानी से एक बात आपके जेहन मे घूम रही होगी बड़ी बेमेल सी जोड़ी है। मगर मिथुन चक्रवर्ती का फिल्म देख कर बड़े हुए युवाओं के साथ यह एक समस्या रही है कि वे प्रेम करते वक्त प्रेमिका का स्तर नही देखते।
चलते हैं आज के दिन मे फिर से। बेलू चार बजे सुबह ही उठ गया था और उसने शाह साहब की बाउंड्री फांद कर उनके सारे गुलाब तोड़ लिए थे। दीवार फांदते समय शायद हाथ मे बाउंड्री का शीशा चुभ गया था। हाथ लहूलुहान, बलबल खून, मगर हाय रे इश्क का जुनून। 
अगर मान गयी तो इसी खून से मांग ....। बेलू शर्मा कर स्याह लाल हो गया था हाथ मे थमे कत्थई रंग वाले गुलाब की पंखुरियों की तरह।
बेलगोबना जैसों से हम नफरत क्यूं करते हैं? बेचारे की शादी बचपन मे ही हो गयी थी। बच्चे बचपन मे ही हो गये थे। ठेला दुकान की आमदनी से घर चलता था। 
औरत की चिख-चिख और बच्चों की चिल्ल-पों सुबह से ही शुरु हो जाती थी। वह सर झटकता और बीड़ी धूंकता। सौंदर्य उसने देखा तक नही था और जब देखा तो दोस्तों ने झाड़ पर चढा दिया। जो चार पैसों की आमदनी थी वो दोस्तों मे लुटी जा रही थी और बच्चे तक भूखे सो जा रहे थे।
दोस्त गंभीर नही थे। बस मजाक करते और बेलू से पैसे झीटते। सपना का नाम लो बस बेलू धन-कुबेर बन जाता था। ठेला तक बेच कर यार-दोस्तों को खिला-पिला सकने लायक। इश्क हो तो ऐसा हो वरना न हो। दोस्त समझ गये थे सो फायदा उठाते।
प्रेम कर लेना, दोस्तों से हंसी ठिठोली कर लेना ये सब बहुत आसान है मगर प्रेम को शब्द दे पाना वो भी अपने प्यार के सामने बड़ा ही कठिन। फौलाद सी हिम्मत चाहिए एक फूल सी लड़की को प्रपोज करने के लिए। वो तो भला हो कि हाथ मे गुलाब हैं जो काम को अपेक्षाकृत आसान कर देंगे। 
गुलाब बस बढा देना है। महबूब थोड़ा शर्माएगा और गुलाब थाम लेगा मगर कहीं अंग्रेजी मे नाम पूछ लिया तो? 
दोस्तों ने उसे आगाह कर दिया था और उसने भी कोई कसर नही छोड़ी थी ' आइ माइ नेम इज धरमेनदर चाट पकौड़ा। हाज डू डू' अच्छी तरह याद है उसे।
लो परीक्षा की घड़ी आ गयी। बेलू बढ गया है। सर पर कफन बांध कर। लड़की हंसते-हंसते जा रही है। बेलू के हाथ मे दसेक गुलाब हैं। बेलू की छाती मे बज रहा है धड़-धड-धड़-धड़। वो बस पहुंचने वाला है। अब उसे कुछ और नही दिख रहा, कुछ नही सूझ रहा, बस हाथों के गुलाब और आगे गुलाब सी लड़की।
चटाक-चटाक की आवाज आयी है। बेलू दोनो हाथों से अपने गाल थामे है। गुलाब रास्ते मे बिखड़ चुके हैं। बिखड़ा हुआ बेलू का दिल भी है मगर वो पब्लिक नही देख पा रही। 
लड़की के परिजन आ गये हैं और पुलिस बुलाने की बात कर रहे हैं। बेलू की औरत हाय-हाय कर रही है। बेलू के बच्चे वहीं चोर-पुलिस खेल रहे हैं।
बेलू अब अपने सही जगह पर है। उसने लड़की के दोनो पैरों को अपने हाथों से थाम रखा है और रहम की भीख मांगता जा रहा है।
बेलगोबना या बेलू यानि धरमेनदर यानि धर्मेन्द्र मंडल यानि धरमेनदर चाट एण्ड गोलगप्पे वाले ठेले के प्रोपराइटर की ये वाली प्रेम कहानी की यहीं दी इण्ड हो जाती है।

चोट

कुछ दर्द छुपे थे सीने में
सांसें बेदिल-बोझिल सी थी
गालों पर आ ढलके आंसू
यादों पर देखो पहरा था
नम आंखों मे इक चेहरा था
हां चोट बड़ा ही गहरा था।।
बातों-बातों मे बात चली
तेरे ख्वाब सजाते रात ढली
तुझको पाने की थी ख्वाहिश
पर गैर के सर पर सहरा था
नम आंखों मे इक चेहरा था
हां चोट बड़ा ही गहरा था।।
कहने-सुनने की बातें सब
जब तक जीएं हम साथ रहे
मांगें रब से बस दुआ यही
हो खुशीयों की बरसात रहे
इस फेर मे मौत भी ठहरा था
नम आंखों मे इक चेहरा था
हां चोट बड़ा ही गहरा था।।
पलकें रहती थी नीर भरी
तुझे खोने की थी पीड़ बड़ी
तुम गैर की बाहों मे खुश थे
और लबों की लाली थी गहरी
तेरे फरेब का रंग सुनहरा था
नम आंखों मे इक चेहरा था
हां चोट बड़ा ही गहरा था।।

मारा था जिसने तीर



मारा था जिसने तीर वो सय्याद नही था
उस पे खुदा की खैर उसे याद नही था।।
कल तक इलाही उसने कहा तू मेरा खुदा
अब आज बेकसी की उसे याद नही था।।
हर हर्फ वो मुझसे कहे क्या हूं तेरे बगैर
मै आज मुन्तजिर हूं उसे याद नही था।।
महबूब ने कहा के मुझे साथ ले चलो
हुए जब सवाल-ए-यार उसे याद नही था।।
कहते थे ना जी सकेंगे इक पल तेरे बगैर
जब मर रहा था मै तो उसे याद नही था।।
इक पल हुआ के वो मेरे सीने मे थे छुपे
हम कत्ल हो गये औ उसे याद नही था।।
इजहारे वफा करते उनके सुर्ख गाल 'शैल'
था इश्क या फरेब के उसे याद नही था।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।

सहर

हुयी है शाम तो कल सहर भी होगा
बिन तेरे ही सही मेरा बसर भी होगा।।
तेरे आंगन मे हो चांद-तारों से रोशनी
अंधेरों मे हो मगर मेरा गुजर भी होगा।।
तू उड़ती रह आसमान मे पंछी बन कर
गिरते-पड़ते कदम मेरा सफर भी होगा।।
क़ायनात की हर खुशीयां तुझे मुबारक
मेरी जानिब आंसूओं का मंजर भी होगा।।
तमाम उम्र तेरे लबों से अमृत पीते रहे
क्या था मालूम पीने को जहर भी होगा।।
तेरी गैर से मोहब्बत की जड़ें हों गहरी
आँधीयों मे डोलता इक शजर भी होगा।।
इस जनम तन्हा रहलें तेरी खातिर 'शैल'
मेरे कब्र पर मगर तेरी आंखें तर भी होगा।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

तुम्हारा मेरे जीवन मे होना

तुम्हारा मेरे जीवन मे होना
बिल्कुल वैसे ही है
जैसे जिओ के सिम मे 
नेटवर्क का आना-जाना
कभी 4जी स्पीड से आकर
तुम जीवन पर छा जाते हो
मन करता है जीवन की सारी
खुशीयां डाउनलोड कर लूं
फिर कभी नेटवर्क की चक्की
जीवन की चक्के की तरह
घूमने लगती है बिना रूके
खिन्न मन उकता जाता है
आज ही पोर्ट आउट होकर
एयरटेल मे माइग्रेट हो जाउं
कयूंकि अंत मे मंत्रा तो यही है
सब कुछ ट्राइ करना चाहिए।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

जीवन का 'शून्य

मेरी बंद मुट्ठीयों मे
मेरे जीवन भर का 'शून्य' है
जाने-अन्जाने 
इस 'शून्य' को ही
मै 'तुम' समझ लेता हूं 
और भींचे रहता हूं
अपनी बंद मुट्ठीयां
इस डर से कि कहीं
खो ना दूं मै तुम्हें
इस 'शून्य' से ही पूर्ण होता मै
शायद खुदगर्ज हो चला हूं
अब इसे खो नही सकता
हां तेरे बिन जी नही सकता।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

बात निकल चुकी थी

बात निकल चुकी थी
वापिस लौटानी मुश्किल थी
बात अब आगे बढेगी
गली-मोहल्ले होकर गुजरेगी
बात चुंकि दिलफ़रेब है
सो अब दिल्लगी भी करेगी।
बेवफ़ा या बे-मुरव्वत जो कह लें
बात आपको ला-जवाब कर दे
जब तक बा-पर्दा थी
हमराज़ और हम-ख़याल थी
जब तक आपने इज्जत बख्शी
बात चौखट के भीतर थी
अब बात चौक-चौराहों पर है
जनाब अपनी ख़ैरियत ढूंढिए।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।

चल बचपन की दौड़ लगा दें

चल बचपन की दौड़ लगा दें
चल उड़ जाते हैं अम्बर मे
करते हैं चिड़ियों से बातें
फुर्र हो जाते हैं पल भर मे।
चल छुप कर घर के कोने मे
गिनते हैं सौ-सौ की बोली
देकर धप्पा इक-दूजे को
चल खेलें हम आंख-मिचौली ।।
चल गुड़िया को सजा-धजा कर
बन जाते हम सब बाराती
रिश्तों की गुत्थी सुलझाकर
चल सीखें जीवन की पाती।।।
पल मे करते अक्कड़-बक्कड़
फिर बनते हम चोर-सिपाही
पल मे लड़ते जी भर कर हम
बन जाते पल मे हमराही।।।।
चल घूमें हम गोल-गोल फिर
जीवन को चल चाह नयी दें
चल ढूंढें फिर से बचपन को
जीवन को चल राह नयी दें।।।।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।

इक बार जो पड़ी



इक बार जो पड़ी तो हम उससे सुधर गये
नादानियों मे कितने ही किस्से बिगड़ गये।।
सच जान कर तेरा फरेब दिल गंवा लिया
जब होश मे आए तो मैकदे से घर गये।।
इन आंधीयों मे कितने शजर टूट कर गिरे
वो दरख्त सलामत रहे पहले जो डर गये।।
तेरे ख्यालों मे इस कदर खुद को भुला दिया
सबने किया आगाह हम जिधर-जिधर गये।।
इक पल मे तुमने रंग क्यूं अपने बदल लिए
दिल के मिरे अरमान सभी टूटे बिखड़ गये।।
मेरी बद-दुआओं का हुआ असर बड़ा अजीब
मिली बेचारगी जाहिद उनके जीवन संवर गये।।
सर पे कफन बांध कर निकला किए थे 'शैल'
पड़ी जो मार उल्फत की हम बेवक्त मर गये।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।

चल दिल की राह बनाते हैं

चल दिल की राह बनाते हैं
चल मसले कुछ सुलझाते हैं
जीवन का क्या ये कल ना हो
चल मन के मैल मिटाते हैं।
चल खुद को अब समझाते हैं
दादू-कबीर बन जाते हैं
क्या खोया है क्या पा लेंगे
इससे उपर उठ जाते हैं।
जब तक तेरे पैर जमीं पर थे
थी जब तक सांसें गर्म तेरी
जब तक दिल तेरा धड़क रहा
थे स्वजन तेरे थी मां तेरी।
बस प्राण नही हैं लाश बना
अपने अब नजर चुराते हैं
तेरी चिता अभी तक धधक रही
सब जीवन मे बढ जाते हैं।
अपने लोगों की सुख खातिर
खुद की तुमने परवाह न की
दो पल को आंखें छलका कर
सब अपने फर्ज निभाते हैं।
चल बात बड़ी कर जाते हैं
जीवन को खेल बनाते हैं
अपने हिस्से का हर दिन जी
चल फिर बच्चे बन जाते हैं।
चल दिल की राह बनाते हैं
चल मसले कुछ सुलझाते हैं।
प्रकाश रंजन 'शैल'।

चल शाम हुयी चल वापस चल

चल शाम हुयी चल वापस चल
तू जीवन के कुछ रंग बदल
थक गया बहुत पर दौड़ रहा
चल बैठ जरा सुस्ता ले चल
तू ले अपनी अब सोच बदल।।
यह प्रीत-नेह, आना जाना
तेरी हार-जीत, खोना-पाना
इक दिन मिट्टी मे मिल जाना
सब छोड़ यहीं है चल देना
सृष्टि का है यह नियम अटल।।
चल तोड़ दे जीवन के बंधन
सुलझा ले जीवन की उलझन
चल हुआ बहुत चल जरा संभल
खुल कर जी ले जीवन के पल
अब सफर खत्म जाना है कल ।।
इस पल से कर ये नयी पहल
चल शाम हुयी अब वापस चल।।

जीवन की मुस्कान बनेगी

जीवन की मुस्कान बनेगी
मां का यह अभिमान बनेगी
कली खिली है इक प्यारी सी
बढ बगिया की शान बनेगी।
नन्ही सी महमान अभी है
घर-भर की यह जान अभी है
खूब पढेगी खूब बढेगी
पापा की पहचान बनेगी
कदमों मे हो दुनिया इक दिन
बढ बगिया की शान बनेगी।।
कोयल सी आवाज निराली
दिखती कितनी भोली-भाली
आंखें इसकी इतनी सुन्दर
सपनों की उड़ान बनेगी
परी हमारी पंख सजा कर
बढ बगिया की शान बनेगी।।
कोमलता से फूल लजाए
हंसे अगर तो गुल खिल जाए
घर की देहरी छोड़े जिस दिन
दुनिया की मुस्कान बनेगी
कली खिली है इक प्यारी सी
बढ बगिया की शान बनेगी।

बात कहनी चाहिए

इस जहां से उस जहां तक बात कहनी चाहिए।
खामोशी मे कहकशां की बात कहनी चाहिए।।
जिंदगी बोझिल बनेगा गर जुबां सिल कर रहें।
दोस्तों से खुल के दिल की बात कहनी चाहिए।।
ख्वाब सारे दिल मे ही रह जाएंगे होकर दफन।
इस जमीं पर आसमां की बात कहनी चाहिए।।
प्यार तेरा गैर के आंगन ना बिखरे चांदनी।
महजबीं से इश्क की हर बात कहनी चाहिए।।
सोच मत तू क्या बनेगा, क्या बदल पाएगा तू।
गर्दिशों मे हौसलों की बात कहनी चाहिए।।
धुप्प अंधेरा हर तरफ हैरान क्यूं है 'शैल' तू।
उलझनों मे फ़ैसलों की बात कहनी चाहिए।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

तेरे इश्क की मैं नजर देखता हूं

सरे राह यूं ही जो सपने दिखाए
जो जीवन सफर के थे रस्ते बताए
मै तंग गलियों की डगर देखता हूं
मै थक कर तुम्हें बेखबर देखता हूं
तेरे इश्क की मैं नजर देखता हूं।
तेरे देह की वो मादक सी खुशबू
तेरे नाजुक लबों से लाली चुराना
मै आहों के अपनी असर देखता हूं
कि चाहत के अपनी कसर देखता हूं
तेरे इश्क की मैं नजर देखता हूं।
जो दिल मे तुम्हारे फरेबों का घर हो
मेरे दिल मे तुमको खोने का डर हो
मै बेमेल दिल का सफर देखता हूं
हूं अदना मुसाफिर शहर देखता हूं
तेरे इश्क की मैं नजर देखता हूं।
वो पल मे तेरा अपनी रंगत बदलना
वो मिलना, बिछड़ना, जीवन मे बढना
मै खंजर से घायल जिगर देखता हूं
के मरने की अपनी उमर देखता हूं
तेरे इश्क की मैं नजर देखता हूं।
तेरे इश्क़ की इक नजर देखता हूं।।
प्रकाश रंजन 'शैल'।

तेरी सब सदा पर सुलग गये

तेरी सब सदा पर सुलग गये
तेरे हर अदा पर पिघल गये
जो हाथ दिया तूने थम गये
जो साथ दिया तूने रम गये
मेरा बस इतना कसूर था
मेरे दिल मे इक फितूर था
दुनिया भर से मै जुदा बनूं
मै पाकर तुझको खुदा बनूं
इस ख्वाब ने मेरा सब छीना
हर घूंट जहर के अब पीना
इस जीवन का प्रारब्ध यही
तब मैने मन की बात कही
अब आसमान से आना तुम
मुझे प्रीत के गीत सुनाना तुम
तुझसे लेकर के विदा सनम
हम दिल का रिश्ता करें खत्म।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

मैने सब कहानी सुनायी



मैने सब कहानी सुनायी
बस इक छुपा ली थी
जिसमे तुम थे ही नही 
एक भटका हुआ राही था
एक अन्जान सफर 
और एक अन्जान शहर।
जब अपना सब खोकर 
मै निकला उस शहर से 
बेशक तुम्हारी याद आयी थी
मगर मै भुला बैठा था
तुम्हारा नाम पता सब
अब जब भी मिलना
मुझे खुद मे समेट लेना
कि तुम्हारा नाम ही
मेरी पहचान बन जाए।।।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

तुम थे कुछ

तुम थे कुछ 
बिना रिश्तों के
बंधे हुए थे 
सैकड़ों बंधनों मे
मुझसे बातें करते
खूब हँसते
साथ चलते तुम
कभी खो जाते थे
तब मै ढूंढता था
पहले तुम्हें
फिर अपने रिश्तों को
उन पत्थरों पर खु्दा है
तेरा मेरा नाम
शायद कोई रिश्ता भी
लिखा होगा कभी
पर वक्त के थपेड़ों ने
मिटा दिए हैं हर्फ
अब हम नाजायज हैं
'मै और तुम'
बाकी सब हैं
'ईश्वरीय' उपहार।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।

कविता या कोई कहानी है तू



कविता या कोई कहानी है तू
ख्वाब है या जिन्दगानी है तू
बुढापे की मेरी जवानी है तू
फकीरा हूं मै मेरी रानी है तू।
दिल मे उमंगे हैं तुमसे सनम
तुम से शुरू है तुम पे खत्म
जीवन के हर शै मे देखूं तुम्हें 
ये जानूं मै मेरी दिवानी है तू।
यूं तो सफर मे उलझनें बड़ी
पल मे सवालों की लगती झड़ी
इक दुःख के आगे दूजा खड़ा
रहता है मन मेरा संशय भरा।
बढते रहें हमकदम हर कदम
तेरे संग सह लें जहां के सितम
बेचैन इस दिल की रवानी है तू
के तपते मरुस्थल मे पानी है तू।
तू ही सांस है जिन्दगानी है तू
मै कान्हा हूं मीरा दिवानी है तू
दुआ ये करें हम खुदा से सनम
तेरा संग हो अब सातों जनम।।
© प्रकाश रंजन 'शैल'।